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________________ अध्यात्म बारहवडी ११७ अलबध गर्भज मैं नाही, जलचर नाहि जु भोग घरांही । वास सारा द्वै ? सव ए, चउतीसा पसुहे है अव ए ||१६३ ।। बयालीसा नत्र चौतीसा, पच्यासो तिरयंच गतीसा । नव मनुजा हूँ मर हूँ नारक. इन सब भेदनि ते तु फारक ।।१६।। अठ अधिका निवै तू भाष, सर्व समासा तू ही राखे । पच्यासी नव चउ जव मिलहीं, दै कम इकशत जब सब रहहीं ।।१६५॥ ए बस थावर भेद सबै ही, भये होहिगें हैं जु अवैही । जिनवर तू सन को प्रतिपालक, श्री भगवंत सकल दुख टालक ||१९६१ इन भेदनि लें मोहि निकास, शुद्ध रूप कर प्रभु अविनाम । इनकी रक्षक करि हरि मौकों, इनते रहित करहु तुझ धोकौं ।।१७।। सोरठा ठाग बाग च्यार ए, चउतीस जु भेद पशु । नौ विकलत्रय धार, बयालीस जु भावरा ।।१६८।।
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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