________________
महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
विकलत्रय पूरण अर इतरा,
फूनि जु अलब्ध मिलें नव नितरा । मनुज तणे नव भेद सुनी अब,
षट पर तीन मिले हनव सब ।।१८७|| * कुभोग भलेछ अ खंडा,
पर्यापित प्रो इतर जु मंडा । अरिजखंड मांहि द्वै भेदा,
गर्भज सन्मूर्छन जिन वेदा ।।१८।। गर्भज होय सुदोय प्रकारा,
पूरण इतर सही निरधारा । सन्मूर्छन अलवधही होई,
षद द्वै इक मिलि तब विधि सोई ।।१६।।
पंचद्री पसु हैं चउतीसा,
तिनके भेद कहे जु जतीसा । कर्मभूमि के समनां अमनां,
गर्भज जलचर थलचर गगनां ।।.६०||
पर्यापत प्रो. इतर गनौं ए.
द्वादश सूत्र प्रमाण मृनौ ए । फुनि सन्भूर्छन समनां अमना,
जलचर थलचर नभचर गमनां ।।१६१।।
सुरण इतर अनद्य मिल जब,
दश पाठ गिर्ने जु भेद सब । भोगह भोगभूमि के समनां,
नभचर भलचर = द्वै गमनां ।।१६२।।