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________________ अध्यात्म बारहखड़ी ए समकित के शत्रु जु पापा, मोर्त सकल निवारि सु श्रापा । अठ्यासी तें तीन घटं जब, प्रकति पच्यासी निवल महासव ।। १८१॥ सठि नासि जु केवल पार्क, पच्यासी तजि तो महि आवै । जीव समास अठचारणव सेती, छूटि करिसी प्रकति सुरेती ।। १८२ ॥ है प्रठ्यांरराव जीव समासा, जग बासिनि के भेद निरासा । तू ही ख्यात करें जिन स्वामी, सवकौ पालक अंतरजांमी ।। १८३ ।। पंच जु थावर चउदह भेदा, तिन मैं च्यारि सु अष्ट विवेदा । पृथ्वी जल अर अनि जु वायू, सूक्षम दादर अष्ट गिना ।। १८४ ।। नित्येतर सूक्षम अर चादर, प्रत्येक मिले पट यावर । अष्ट सुषट मिलि चउदश भेदा, पूरण इतर प्रलब्ध जु वेदा ।।१८५।। चउदह क तिगुणें जब करंही, द्वं बीसी द्वे अधिके घरहीं । सुर है नारक गनियें, पूरण इतर गर्ने चउ भनिये ।। १८६ ।। PEX
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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