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________________ ૨૪ महाकवि दौलतराम कासलीवाल - व्यक्तित्व एवं कृतिस्व अठसटि तीरथ भौतिक व्हावें, तो विनु शिव पुर पंथ न पावें । ग्रहतरि के आधे देवा, गुणतालीस नाहि जु जाचों, अस्सो ऊरध लोक सु प्रथम कहेवा ||१७५ ॥ षोडस षोडस एकक सुरगिर, ऐसी करतो मैं हरि राव । मंदिर तेरे स्वामी, पंचमेरू में हैं अभिरामी || १७६ ।। के अस्सी के इक्यासी जो, अठवासी धारहि तेरे सोध सदाथिर । प्रकति श्रघाती तेरम ठाणे, तू सब भेद भाव परमारौं । असी करो मोसौं जिनराय, पंच के चउरासी पच्यासी जो ॥१७७ ।। तेरी निजदासा प्रभू ह्न कै नई नई नहि धारों काय ।।१७८ || आ तुव पुरि जग जल देके । आवे देवा, चड चालीसा टारि विभेवा ||१७६ ॥ मद मूढत्व अनायत नाजे, संकादिक श्रर भय बिसनाजे । श्रतीचारा प्रभु टारे, वीसी है दु अघसारे ॥। १८० ||
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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