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महाकवि दौलतराम कासलीवाल - व्यक्तित्व एवं कृतिस्व
अठसटि तीरथ भौतिक व्हावें,
तो विनु शिव पुर पंथ न पावें । ग्रहतरि के आधे देवा,
गुणतालीस नाहि जु जाचों,
अस्सो
ऊरध लोक सु प्रथम कहेवा ||१७५ ॥
षोडस षोडस एकक सुरगिर,
ऐसी करतो मैं हरि राव । मंदिर तेरे स्वामी, पंचमेरू में हैं अभिरामी || १७६ ।।
के अस्सी के इक्यासी जो,
अठवासी
धारहि तेरे सोध सदाथिर ।
प्रकति श्रघाती तेरम ठाणे,
तू सब भेद भाव परमारौं । असी करो मोसौं जिनराय,
पंच
के चउरासी पच्यासी जो ॥१७७ ।।
तेरी निजदासा प्रभू ह्न कै
नई नई नहि धारों काय ।।१७८ ||
आ तुव पुरि जग जल देके । आवे देवा,
चड चालीसा टारि विभेवा ||१७६ ॥
मद मूढत्व अनायत
नाजे,
संकादिक श्रर भय बिसनाजे ।
श्रतीचारा प्रभु टारे,
वीसी है दु अघसारे ॥। १८० ||