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________________ अध्यात्म बारहखड़ी १९३ अट्ठावन के आधे स्वामी, गुणतीसौं रतनश्रय नामी । ते सब भेद हेतु किरपा कारि. फुनि अभेद रूपो करि भवहरि ।।१७०।। एक घाटि करिये जु अठांवन, जीव समास जु हसत्तावन । जीव रक्षगा तेरौ पंथा, तू योगीश्वर हित जु गंथा ।।१७१।। * एक अधिक अढ़सठि सौ उपरि, ए निश्च पावै शिव भवतरि । कैयक तदभव कैयक जन्म, पावें तुव पर हतो तन्मैं ॥१७२।। अळसाठि वर्ष जु ऊपरि एका, गुणहत्तरी जीवी जु विवेका । एकादशमौं रुद्र ज स्वामी, पारवती प्राणेश्वर नामी ॥१७३।। तोहि ध्याय हासी तो सरिषा, तू तीर्थकर पूरण पुरिषा । अढसठि के प्राधे चौतीसा, येहैं अतिशय तो करि ईशा ॥१७४।। * १६६ जीब-मोक्षका अधिकारी छ ...२४ तीर्थ कर, २४ पिना २४ माता, २४ कामदेव, ६ वासुदेव, ६ प्रतिवासुदेव, १ नारद, ६ बलभद्र, ११ रुद्र, १४ कुसकर १२ चकी [ मूल प्रति की टीका |
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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