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________________ १९२ महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व अष्टनि के से पर अटताली, ते सव भेव हरे भ्रमजाली । तू जिन कर्म हरो हर अवसा, वशकीये ते त्रिभुवन स्ववशा ।।१६५॥ जीव समास जु हैं गुन्नीसा, पूर्णोतर गुनिये अढ़तीसा । सवको रक्षक तू जु जिनेश्वर, सब भेदनि ते रहित शिवेश्वर ।।१६६॥ अठतीसाँ पनि एक अधिक हूं. कल परकल पातीत भेद द्वै । सब ऊरध लोकहि के ऊपरि, तेरो वास जु है सवक सिरि ॥१६७।। नाहि वासना तो मै कोऊ, वासदेन हारौ इक होऊ 1 अठतालीसौं काव्य जु तेरी, भक्तामर की ऋद्धि घनेरी ॥१६७।। ते निवसौ मेरे घटि देवा, मानतुग दुख दूरि करेवा । एक ऊन अडतालीसाजे, धातिक प्रति अति मलिन महाजे ॥१६८।। ते सव नासहि तेरे भक्ता, तू सौ अर अठताल विमुक्ता। चौवीसौं माता मरताता, ए अठताल हो थकी ख्याता ।।१६६॥
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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