________________
मध्मारम बारहखड़ी
१६१
सर्व मुनीश्वर तेरे दामा,
दास उधारक तू जु उदासा । अठबीसा है मोह प्रकारा,
ते सब चूरि किये ते भारा ।।१५६।।
गुण यंत्र जु मैं ते सव पीसे,
असो तू जु अधीस जगीसे । लाव अठवीसा देवल तेरै,
पूर्ज सुर्ग सुऋद्धि घणेरे ।।१६०।। अष्टविसति हैं जु अपिंडा,
प्रकती भेद जु चउदह पिंडा । चौदह के व सठि भेदा,
एवं मिलि द्वैत्रिणवं वेदा ॥१६१ ।।
नाम कर्म के ए जु विकारा,
ज्ञानावरण सुपंच प्रकारा । दर्शन प्रावरणी नव भेदा,
अतराय फुनि पंच विवेदा ॥१६२।। द्वै मोहो है अष्टावासी,
तीन मिथ्यात कषाय पचीसी । वेदनि कर्म जु दोय गनेसी,
प्राऊ चौंविधि तू जु हनेसी ॥१६३।। गोत्र कर्म है नीचर ऊचा,
दोय प्रकार जु सूच असूचा । अष्ट कर्म ए दायक भैहे.
कवहू तो महि नाथ न में हैं ॥१६४।।