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महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
पंच भरत ऐरावत पंचा, .
इनमैं हू भू सुख दुख संचा। दश क्षेत्रनि मैं रीति न एका,
और ठौर है एक विवेका ।।१५३।। सर्व जु भेद कहै जिन तू ही,
तू अमितातम कलप समूही । अष्टादस नहि दोष जु तेरै,
ए वड दोष लगे सव केरै ।।१५४।। गुण रूपो तू परम प्रधानां,
सर्व दोषहर मोख विधानां । अष्टादश कोटी जु तुरंगा,
त्यागहि चक्री होय इकंगा ॥१५५।। तेरह रंग रागि निज रंगा,
भंग भूति तजि होहि अभंगा । सहस अठाइह राँणी जाक,
देव विद्याधर अनुचर ताकं ।।१५६।। सो रावण विषयनि मैं पागौ,
जगत भूति तजि सोहिन लागौ । तदभव मुक्त भयो नहिं ताते, .
अधमपुरी लहि पाई धातै ।। १५७।। तो महि पागि होयगौ मुक्ता,
जब ध्यागौं ह्र जु विरक्ता। अष्टाविसति मूल जु सुगुणा,
तिनके धारक मुनिवर निपुणा ॥१५८।।