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अध्यात्म बारहखड़ी
सव देवन्ति कौ तु ही देवा,
अठ विधि तेरे एकन दी,
तू
नियमाशन प्रारपायामा,
यम
सव करि पूजित एक प्रभेवा ।
प्रठविधि अविधि विधि पीसे ।। १४७॥
प्रत्याहार सुधारण नामा 1
ध्यान समाधि जु अष्ट प्रकारा,
श्रष्टादश
तुज्जु प्रकास रहित विकारा ।। १४८ ।।
सहस अठारह शील अधीशा
मोकु शोल रूप करि ईसा ।
तू जु अनंत गुणातम ज्ञांनी,
धौलेसी किरिया परवानी ॥ १४६ ॥
जे
कोटाकोटी,
सागर भोगधरा जब लोटी ।
तब प्रगटे श्री ऋषभ जु देवा,
कर्मभूमि विधि प्रगट करेवा ।। १५०१६
दश क्षेत्र में कलप जु हौंही,
ठास दोय बीस इतनी
ठारा भोग दोय है कर्म्मा,
वसि जु कोडाकोडि स्वधर्म्मा ।। १५१ ।।
अवसर्पिणी उतसपिणी दस दस,
सागर वीस जु कोडा कोडिस । घरगे,
लोक लोकपति यो जु रहेंगे ।। १५२ ।।
काल अनंत भये
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