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________________ १५८ महाकवि दौलतराम कासलीवास व्यक्तित्व एवं कृतित्व अष्टापद व्याघ्रादिक दुष्टा, तुझ दासनि परि ते नहि रुष्टा । अप्टापद कंचन हूँ कहिये, कंचन त्यागि जु तोहि जु गहिये ।।१४१।। राष्टमि चश को वृत देवा. तू ही जग मैं मगर करेवा । तू अष्टांग दंडवत योझा, अष्टक स्वामि अहद अरोझा ।।१४२।। अठमल सम्यक के तू नास, तु अध्यातम रूप विकास । नेकत सर्व स्वरूप तुम्हारा, अतिमित दोष हरी जु हमारा ।।१४३।। प्रष्ट भेद है वितर देवा, तिन मैं इद्रादिक वसु भात्रा । योतिष सुर जे पंच प्रकारा, एउ शादिक अठ धारा ।।१४४।। भवनपती दश भेद कुमारा, सुर्ग निवासी दोय प्रकारा । सुर्गपती अर भक्तपती जे, तिनमैं इद्रादिक दश लीजै ।।१४५।। पायससित लोक जु पाला, योतिष वितर ते ए ठाला । भव नर सुर्ग मांहि दश भेदा, तेईसौं अहमिद अभेदा ।।१४६।।
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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