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श्रध्यात्म बारहखड़ी
अष्टम सौल चउदम लौ फुनि,
पहिली शुक्ल जु ग्यारम लौं,
तेरम चोदम
शुक्ल ध्यान ही धारहि वर मुनि ।
दूजो शुक्ल सु वारम को ई ॥१३५॥
तीजी शुक्ल सयोग अवस्था,
भगवत रूपा,
परम शुक्लमय त्रिभुवन भूपा ।
अष्टम
सिद्धि दशा में ध्यान न कोई,
धारण ध्येय ध्यान निज होई । धरम शुक्ल शिव के दायक,
अष्टापद
चौथो शुक्ल प्रयोग व्यवस्था ॥१३६॥।
इह तुम्हनें उपदेश जु दीनो,
प्रारति रुद्र कुजन्म भ्रमायक ।। १३७ ।।
मोकों देहु धर्म अरु शुक्ला,
सो सम्यक्ती जीवनि चीनों ।
आरति रुद्र निवारी विकला ॥१३८॥
वरपति अंतरजामी,
अष्टम धर दाय अभिरामी ।
है तेरे थांना,
तू अष्टकपति शिव ततिरानां १३६ ।।
प्रष्टापद तें भूषित कीयो,
अष्टापद तें शिवपुर लोयो ।
अष्टापद कैलास जु गिर है,
ताकी पति तु ऋषभ सुथिर है || १४०॥
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