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महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
अवगम भूषित देव अकाया,
अष्ट' धरा को तू इक राया। अष्ट सुसम्यक दर्शन ईशा,
अष्ट जू सम्यक ज्ञान अधीशा। तेरहि विधि चारित्र जु होई,
सब को भासक तू जिन सोई । त्रयी रूप है तू जु अभेदा,
एक रूप तू सर्व सुवेदा ।।१३०।। अष्ट सिद्धि अर नव निधि द्वार,
तेरै कु भी पर जुगु दारं । तू वसु ऋद्धि मूल जग स्वामी,
तू वसुधा महि अदभुत धामी ।।१३१।। प्रविधि प्रबचन माता जे हैं,
पंच समिति अय गुप्ति गने हैं। अष्ट शुद्धि धारक मुनि भक्ता,
तु जु अष्ट विधि कर्म विमुक्ता ।।१३२।।
अष्टम गुण थानक तं श्रेणी,
उपशम क्षपक रूप सुख देनी । उपशय वारे द्वं इक भवलें,
क्षपक विहारे तद्भव शिवले ।।१३३।। अष्टम गुण नीचे नहि शुक्ला,
दह तेरौ उपदेश जु अकला। घीयो गुरण सौं सप्तम ताई,
__ धर्म ध्यान नहीं होई जु साई ।।१३४।।