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अध्यात्म बारहखड़ी
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अष्टाह्निक तुव गुण व्रतस्वामी,
तू अष्टातम ऊरध धांमी । अष्टानिक प्रत करि जव ध्याये,
कोडीभड को कोढ़ गुमाये ।।१२४॥ अति ताकी पतिवरना वाला,
कोडीभड नरपति श्रीपाला । जलनिधि मैं कोडीभह तारे,
फेरि भबोदधि ते जु उधारे ।।१२५।। अखिल ऋद्धि भड को तुम दीनी,
इह तुम्हरी महिमा जग चीनी । अष्ट चक्रवति ही तारे,
अष्ट हली ते ही जु उघारे ॥१९६।। चौ चक्री इकदल तारंगो,
पाप समांन करी धारैगो । प्रष्ट भेद लोकांतिक देवा,
तुव जपि पावेंगे भव छेवा ॥१२७।। अठ विधि लोकांतिक को आयू,
अष्टहि सागरतं हि बतायू 1 अठ विधि ऋद्धि लहैं तुव भक्ता,
तु जु अष्ट विधि कर्म विमुक्ता ।।१२८।। अठ विधि योग प्रकाशक ईसा,
अठ विधि पूजा जोगि अधोशा । अष्ट प्रकारी पूज कर जे,
तेरी जिनवर अष्ट हरे जे । प्रष्ट हरी हमरे हरि देवा,
अष्ट गुणादे हो जु अछेवा ।।१२६॥