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________________ अध्यात्म बारहखड़ी १८१ अष्टाह्निक तुव गुण व्रतस्वामी, तू अष्टातम ऊरध धांमी । अष्टानिक प्रत करि जव ध्याये, कोडीभड को कोढ़ गुमाये ।।१२४॥ अति ताकी पतिवरना वाला, कोडीभड नरपति श्रीपाला । जलनिधि मैं कोडीभह तारे, फेरि भबोदधि ते जु उधारे ।।१२५।। अखिल ऋद्धि भड को तुम दीनी, इह तुम्हरी महिमा जग चीनी । अष्ट चक्रवति ही तारे, अष्ट हली ते ही जु उघारे ॥१९६।। चौ चक्री इकदल तारंगो, पाप समांन करी धारैगो । प्रष्ट भेद लोकांतिक देवा, तुव जपि पावेंगे भव छेवा ॥१२७।। अठ विधि लोकांतिक को आयू, अष्टहि सागरतं हि बतायू 1 अठ विधि ऋद्धि लहैं तुव भक्ता, तु जु अष्ट विधि कर्म विमुक्ता ।।१२८।। अठ विधि योग प्रकाशक ईसा, अठ विधि पूजा जोगि अधोशा । अष्ट प्रकारी पूज कर जे, तेरी जिनवर अष्ट हरे जे । प्रष्ट हरी हमरे हरि देवा, अष्ट गुणादे हो जु अछेवा ।।१२६॥
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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