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________________ 'जिनजी की रसोई' पाक शास्त्र पर एक महत्वपुर्ण कृति है। जैन ऋषियों द्वारा लिखी हुई संभवतः ऐसो प्रथम रचना है जो केवल पाक-शास्त्र से सम्बन्ध रखती है। इसमें कवि ने व्यजनों, पक्वानों एवं फसों के नाम गिनाकर उनके बनाने की विधि का उल्लेख किया है । इसी के साथ तीर्थकर के विविध प्रकार के प्राभूषणों का भी वर्णन मिलता है। जैसे रूठे हुये कृष्णा जी को यशोदा मनाती थी; उसी तरह इसमें कवि ने "सुम रूसो मत मेरे चिमना, सेलो वहुविधि घर के अंगना" कहकर उन्हें मनाने की प्रक्रिपा अपनायी है। सोहे सुन्दर कुण्डल कान, गले हार मोतिन को जाणि । कड़ा जड़ाऊ हाथा पगा, रंग रंग का पहरे भंगा ।। होरा जडित पांच अति सोहे, सुर नर नाग सकल मन मोहे । माथे मुकुट अनुपम सार, खेले कुंबर महासुख कार ।। इसी तरह विविध प्रकार के ध्यजनों का जब वर्णन किया गया है। तो ऐसा लगता है कि मानों स्वयं कवि उन्हें बनाने बैठ गया हो जांबू नीवू स्वारा मिठा, करौ सवाद रही मति रूठा । सरदा खरबूजा काकडी, नौझी प्राणी तुरत की घड़ी ।। केरीपाक मुरबा भला, पांति खांड घी में घिलमिला । छोलि बादाम धरे अखरोट, चारौली पिस्ता की मोट ।। वेसरण की चौखी पापडी, धिरत मांहि तलते भी धरी । मुख विलास मुख मांहि विलाई, तास वोपमा कही न जाई । प्रस्तुत रचना संवत् १७६५ की है। एक ओर मामेर में अजयराज साहित्य की गंगा बहा रहे थे तो दूसरी ओर दौलतराम उदयपुर में काव्य रचना कर रहे थे। अजयराज अन्त तक आमेर में ही रहे और जयपुर वसने के बाद भी उन्होंने भामेर में रहना ही उचित समझा। इन्होंने भामेर नगर, वहां के राजमहल, प्राकृतिक दृश्य, मन्दिर यादि का प्रच्छा वर्णन किया है। इन्होंने महाराजा जयसिंह के शासन काल का भी उल्लेख किया है । एक वर्णन देखिये अजयराज इह कीयो वखापा, राज सवाई जर्यासह प्राण । अंबावती सहरै सुभ थान, जिन मन्दिर जिन देव विमान ।।
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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