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________________ प्रध्यात्म बारहखड़ी अधिक सुखासुख रूप विराजा, अति प्रानंदमई भव पाजा । अतिशीली अतिभाव जगीसा, अतिशर्मी शिवमूल अनीशा ।। ११२॥ अति धननाथ अनादि अनंता, अच्युत अगणित श्रीभगवंता । अमित जगत दुखहरण दयाला, अभिल इमा परमेव कृपासा ॥११३।। अतिशय सागर अखिल जु पीवा, अनुपद्रित अति शिवसुख दीवा । अति पापिष्ट जु जे नर स्वामी, तोहि न पूज हितू जु विरामी ।।११४॥ अवनीपति पूजित वडभागा, अजस निवारक देव विरागा। तू हि अनंतमती सुजिनिंदा, तुहि अनंतगती मु मुनिदा ।।११।। अष्ट अंग समकित के तूही, भाषै जिनवर गुण जु समूही। अष्ट अंग के धारक जे हैं, ते सबतें ही ख्यात किये हैं ।। ११६।। अंजन और अनंतमती जो, राव उदायन कर्म हत्ती जो। रेवती रागी जिनवर भक्ता, फुनि जु जिनेंद्र भक्त जिन रक्ता ।।११७॥
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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