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________________ अध्यात्म बारहखड़ी १७१ तू अविकार अनंजन स्वामी, ल अनगार प्ररंजन सामी । अति अधिकार जु एक तुही है, गति गति ज्ञायक नायक तूहि मही है ।।४०॥ अवधिगम्य च साय हमारा, सर्वाधिक्य सुरूप तुम्हारा । अक्षातीत अक्ष बितीतं, अमरवीतं परमप्रतीतं ।।४।। अक्षर त अक्षर ते न्यारा, अक्षर भामत जगत उधारा । अति दुषहर अचहर अभिनंदी, अति भरपुरण एन निकदी ॥४२॥ त् जु कर्तृ म देव अनादी, अतिभव कंदन एक अवादी । अकलित अखिलित तू जु अनुत्तम, * त अतिभार अभार जगुत्तम ॥४३।। प्रत्युत्तर तू नाथ प्रत्युत्तम, सुखतर उत्तर तू जु जिनुतम । अभयकर अतिधरण अनंता, अजित जिनेश्वर श्रीभगवंता ॥४४।। अतनु विदार अनंगस्वरूपा, अतनु जु कहिये काम अरूपा । अनघ प्रचार अहित हत तू है, प्रचर प्रचार अभंग प्रभू है ।।५।। * अनुत्तम कहता महा उत्तम सारा उत्तम जिह पाई छ ।
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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