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अध्यात्म बारहखड़ी
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तू अविकार अनंजन स्वामी,
ल अनगार प्ररंजन सामी । अति अधिकार जु एक तुही है,
गति गति ज्ञायक नायक तूहि मही है ।।४०॥ अवधिगम्य च साय हमारा,
सर्वाधिक्य सुरूप तुम्हारा । अक्षातीत अक्ष बितीतं,
अमरवीतं परमप्रतीतं ।।४।।
अक्षर त अक्षर ते न्यारा,
अक्षर भामत जगत उधारा । अति दुषहर अचहर अभिनंदी,
अति भरपुरण एन निकदी ॥४२॥ त् जु कर्तृ म देव अनादी,
अतिभव कंदन एक अवादी । अकलित अखिलित तू जु अनुत्तम, *
त अतिभार अभार जगुत्तम ॥४३।। प्रत्युत्तर तू नाथ प्रत्युत्तम,
सुखतर उत्तर तू जु जिनुतम । अभयकर अतिधरण अनंता,
अजित जिनेश्वर श्रीभगवंता ॥४४।। अतनु विदार अनंगस्वरूपा,
अतनु जु कहिये काम अरूपा । अनघ प्रचार अहित हत तू है,
प्रचर प्रचार अभंग प्रभू है ।।५।। * अनुत्तम कहता महा उत्तम सारा उत्तम जिह पाई छ ।