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महाकवि दौलतराम कासलीवाल व्यक्तित्व एवं कृतित्व
सांई, ब्रह्म स्वरूपी देव गुसांई ।
तू जु श्रनंग विवर्जित
असत वितजित शील जु तूही, दयावजित जगतप्रभूही
अनृतवर्जी
अदतन लेवा तू जु अकिंचन,
तू जु
अदितिर्जी
तु जु अहिंसाप्रेर अगरजी
अमरेश्वर
श्रहिसाराय श्रमाया, हिसावर्जिन धम्मं वताया
अतत मत सहित जु नाथा,
तू जु अलोक निवार निरंजन ॥४७॥1
पूजित जिनदेवा,
अदत निकंदा तू बहाया ||४६||
चतुर निकायक
।। ४६ ।।
F
अहमिद्रनि करि तू ज् पुजाना,
तू अमरेंद्र इंद्र भगवांनां अहिपति अधिपति सुरपति जेते,
* प्रतिहित अमहत
पति गोपनि धारहि सेवा |
पायक तेरे,
पती हरि तिमर जु मेरे || ४६ |
तव दासन के दास जु तेते ॥५०॥
* इसमें अंतिम पंक्ति नहीं है ।
अहिपति तू
भगत अतिगति प्रतिद्धति जति तू ॥५१॥