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प्रस्तावना
इससे ज्ञात होता है कि कवि समाज के प्रतिष्ठित पद पर पासीन थे। ये पहले सांगानेर रहते थे और फिर भामेर पाकर रहने लगे थे। कवि ने अपनो 'चिशिलास' नामक कृति में इनका वर्णन निम्न प्रकार से किया है ।
"इस प्रय में प्रथम परमात्मा का वर्णन किया, पीछे जपाय परमात्मा पायों का विखाया । जे परमात्मा को जनमो कियो चाहै ते या ग्रंथ को बार-बार विचारो। यह अन्य दीपचन्द साधर्मी कीया वास है, सांगानेर, प्रा मेर में प्राय, तब यह ग्रंथ कियो सं० १७७६ का मिति फागुण बदी पंचमी को यह मय पूर्ण कियो।
कवि की अब तक निम्न कृतियां उपलब्ध हो चुकी है१. अनुभव प्रकाश, २. ग्रात्मावलोकन, ३. चिदविलास ४. परमात्म पुराण. ५. उपदेश रत्नमाला, ६. ज्ञान मानण्ड
'अनुभव प्रकाश' पूर्ण प्राध्यात्मिक रचना है। धारावाहिक रूप में यह गद्य काव्य यद्यपि प्राकार में लघु है, लेकिन जिस रीति से कवि ने गागर में सा, भर दिया है. वह उसी दिन्ना एवं गोरे में पारिक गम्भीर बात कहने का चातुर्य प्रगट करता है ।
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'मात्मावलोकन' इनकी दूसरी आध्यात्मिक कृति है । जिसमें प्रारमा एवं परमात्मा के सम्बन्ध पर विशद विवेचन किया गया है। गद्य शैली में इस प्रकार का विवेचन अन्य ववियों द्वारा बहुत ही कम हुना है । ग्रन्य में विभिन्न अधिकार है। इसकी भाषा इंडारी है। जिस पर बज भाषा का पूर्ण प्रभाव है । पर साथ ही उर्दू भाषा के शब्दों का भी प्रयोग हुना है ।
इसी प्रकार की कवि की अन्य कृतियां भी अध्यात्मपूर्ण है। महाकवि दोलतराम से इनका कितना सम्पर्क रहा इसके सम्बन्ध में निश्चित जानकारी नहीं मिलती। अजयराज पाटनी :
"अजयराज पाटनी" दौलतराम के समकालीन ज्येष्ठ विद्वान थे। पाटनी जी हिन्दी के श्रेष्ठ कबि थे। अपनी लघु रचनायों द्वार। पाठकों को नमी-नयी कृतियां भेंट किया करते थे। अब तक उनकी २० रचनामों का पता लग चुका है, जिनमें पूजा, जयमाल, कथा, गीत, चरित, चौपई, विवाह बंदना, बत्तीसी आदि सभी नाम की कृतियां मिलती हैं। राजस्थान के विभिन्न
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