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महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
हिन्दी-भाषा का यह संभवतः प्रथम काव्य है। जो इतना प्राचीन है। जिसमें गद्य एवं पद्य दोनों ही को अपनाया गया है। रास में ३६ अधिकार हैं। जिनमें २२वें तीर्थंकर नेमिनाथ के जीवन का वर्णन किया गया है। साथ ही में महाभारत की कथा का भी समावेश किया गया है । रास का रचना काल सं १७६६ पासो सुदी १३ पधार है । पूरा रात १३.८ छन्दों में समाप्त होता है, जिनका विभाजन निम्न प्रकार है
दोहा सोरठा सया कडन हाल फुल पोग २६० २५ २ ११ १०१० १३०८
इसके अतिरितः गद्य में जो वर्णन मिलता है, वह उक्त संख्या से पतिरिक्त है । कृति का दूसरा नाम हरिवश पुगण भी दिया हुआ है।
__ "प्रीत्यंबर चौपई" कवि की दूसरी बड़ी रचना है, जो दोहा और चौपई छन्दों में गिबद्ध है, जिनकी संख्या ३१६ है । इसका रचना काल सं० १७७१ वैशाख सुदी ११ है। चौपाई का प्रारम्भ प्रावीन परम्परा के अनुसार हुया है। जिसमें चौवीस तीर्थंकरों के स्तवन के पश्चात् पंच परमेष्टियों की भक्ति एवं प्राचार्य कुन्दबुन्द का स्मरण किया गया है। चौपई को भाया राजस्थानी है
जोबां बैर भाव मिट गयो, आपस में सब आनन्द भयो। वनमाली हास्या भयो देखि, छह रिति मां फल फूल बस ।
वनमाली फल फूल विराय, श्रेणिक राजा बंदी जू भाय । दीपचन्द कासलीवाल :
दीपचन्द कासलीवाल भी आमेर नगर के ही ऋवि थे। ये भी कवि दौलतराम कासलीवाल के समकालीन कवि थे और इन्हीं के समान गद्य-पद्य दोनों ही शैलियों में रचना करने वाले थे। लेकिन इनफा अध्यात्म की ओर अधिक झुकाव था। इसलिये इनकी अधिकांश रचनायें प्रध्यात्म प्रधान हैं ।
___ कदि का जन्म कब हुअा था। इसके सम्बन्ध में कोई निश्चित जानकारी नहीं मिलती ! इनको एक रचना 'प्रास्मावलोकन' सं० १७७४ की कृति है। इसलिए इनका जन्म सं० १७३० के आस पास होना चाहिये । इनकी एक अन्य रचना सं० १७८१ की है। यदि इसे कवि की अन्तिम रचना मान ली जाये तो इनका सम्पूर्ण जीवन संवत् १७३० से १७८५ तक का माना जा सकता है। इनके नाम के पूर्व शाह शब्द का प्रयोग होता था;