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________________ १४६ महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतिरक्ष एक ठौर रहनें न दे, मोहासुर प्रसुरेस । बहु सुर नर पसु करै, कबहुक नारक भेस ।। ७६ ।। आयु नाम है कर्म इक, सहचर मोह नरेस । जीव अमर सो अलप थिति, करि राख्यो राजेस ||८७७|| नाम कर्म नामा करम, नाना देह धराय भरमा नरनाथ को हुकम मोह को पाय८७८ || गोत्र कर्म प्रति भर्म जो जीवहि मोह बसाय 1 ऊंच नीच गोत्रादि मैं, लघु दीर्घ करवाय।८७६ ।। अंतराय दुखदाय प्रति, मोहरा परसाद | जीवराय को जगत में करे अनेक विधन करे आनंद मैं, मगन होन नहि देय । विषाद ||८०|| क्रोध मान माया मदन, अरति जुगपसा मोह के जान देहि निज श्राम नहि, नरक निगोदादिक दुख, श्रम कीटादिक जोनि मैं काराग्रह मैं नृप परचौ छुटि सकै नहि वंधते, खेच्या विषै कषाय को टिक न सकै गढ़ बांधिक, चउरासी लन जोनि में निजपुर प्रतम भाव जे भयकातार असार मैं, भरमैं काल अनंतानंत में, बहु सुर पद होय | विसतें बुरे जु कर्म बसु, भव भव प्राण हरेय ||१|| लोभ हासि रति सोक । सुभट रहे हैं रोकि ||२|| राखे जगत मझार । देहि अनंत अपार ||३|| जामरण मरण कराय । दुख देखे अधिकाय ॥२८८४ ॥ रहे बहौत बेहाल | भटकत फिर भूपाल ||६६५|| लरि न सकेँ वलहीन । भ्रमण करे अति दीन ॥ ६६६ || नहा सकै नहि जाय । भोंदूराय ||६८७|| सुर भवते मात्र जनम, अति दुर्लभ है सोय ॥८८॥
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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