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________________ १४४ महाकवि दौलतराम कासलीवाल - व्यक्तित्व एवं कृतित्व भंडनतिर ऋषियो, तीन भुवन मैं जार। कुबुद्धि कुभावनि दात्रियों दे भव भोग असार ||८५०१ राव रह्यौ रंक प्रति गुन धन दिन नहि चैन । P भटू भूपति विपति में परची वृथा वसि मैन ॥ ८५, १३ भूलि रह्यौ नृप आपकौं, होय रह्यो मतिहीन | भाव सुभट सव बुद्धि डिंग, बैठे वोध अधीन १८५२० मुबुद्धि र जु विवेक धरि, बैठी परम उदास । राव बात वृ नहीं, करें कुबुद्धि विलास ।। ८५३|| आतम भाव भटानि को, नहि नृप के संचार । मोहराव के राव तनि, दाबि लीयौ दरवार ।।८५४ ।। मोह राव को है सही, सेवक सदा कुभाव । कुबुद्धि पुत्रिका मोह की, चाहे मोह प्रभाव ६५५ भेद न समझे मूलि ही भौढ़ करें विसास मोह तिमर करि अध नृप, भयो कुबुद्धि को दास ।।८५६१६ निज परगति पर्याय निज, नृप परजा सुखदाय । बसें सुबुद्धि वसाय ॥५७॥ सकल विपरजं भाव | forest वासन कुमति पैं सर्व विभाव विवाद खल, अखिल पर्याया सदा वसें कुबुद्धि प्रभाव ।। ६५८ | जीवक्षेत्र में जड़ मयी, रहें कुभाव अनेक । कैसे प्राय सधैं महा, सुबुद्धि सुभाव विवेक || है मिथ्यात महीप गुर, मोह प्रकृति मति होन । पाप धरै प्रोहत पदा, जो जग माहि मलीन ||८६० ।। रह्यौ रंक | कुबुधि कुभाव प्रभाव करि राव पटरानी राजे महा, राज बिगार या असुभ महीप पैं, शुद्ध भाव की बात हू, शुभ की देय जहाँ कीयां निसंक ।।८६१ ।। विहारि । रारि ||६६२ ।।
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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