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महाकवि दौलतराम कासलीवाल - व्यक्तित्व एवं कृतित्व
भंडनतिर ऋषियो, तीन भुवन मैं जार। कुबुद्धि कुभावनि दात्रियों दे भव भोग असार ||८५०१
राव रह्यौ रंक प्रति गुन धन दिन नहि चैन ।
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भटू भूपति विपति में परची वृथा वसि मैन ॥ ८५, १३
भूलि रह्यौ नृप आपकौं, होय रह्यो मतिहीन | भाव सुभट सव बुद्धि डिंग, बैठे वोध अधीन १८५२०
मुबुद्धि र जु विवेक धरि, बैठी परम उदास । राव बात वृ नहीं, करें कुबुद्धि विलास ।। ८५३|| आतम भाव भटानि को, नहि नृप के संचार । मोहराव के राव तनि, दाबि लीयौ दरवार ।।८५४ ।। मोह राव को है सही, सेवक सदा कुभाव । कुबुद्धि पुत्रिका मोह की, चाहे मोह प्रभाव ६५५ भेद न समझे मूलि ही भौढ़
करें विसास
मोह तिमर करि अध नृप, भयो कुबुद्धि को दास ।।८५६१६
निज परगति पर्याय निज, नृप परजा सुखदाय । बसें सुबुद्धि वसाय ॥५७॥ सकल विपरजं भाव |
forest वासन कुमति पैं सर्व विभाव विवाद खल,
अखिल पर्याया सदा वसें कुबुद्धि प्रभाव ।। ६५८ | जीवक्षेत्र में जड़ मयी, रहें कुभाव अनेक ।
कैसे प्राय सधैं महा, सुबुद्धि सुभाव विवेक ||
है मिथ्यात महीप गुर, मोह प्रकृति मति होन ।
पाप धरै प्रोहत पदा, जो जग
माहि मलीन ||८६० ।।
रह्यौ रंक |
कुबुधि कुभाव प्रभाव करि राव पटरानी राजे महा, राज बिगार या असुभ महीप पैं, शुद्ध भाव की बात हू,
शुभ की देय जहाँ कीयां
निसंक ।।८६१ ।।
विहारि । रारि ||६६२ ।।