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त्रिनेक विलास
असु अलप सुख अलप थिति. तीव्र कपार प्रचंड । अति विपाद अतिवाद हैं. अलप बुधि अति दंड ।।१५।। सुर नर असुर विद्याधरा, पंचेन्द्रो पसु जेहि। मभचर बनचर ग्रामचर, निकट भव्य मुलटेहि ।। = १६॥ होहि क्रुतारथ सवद सुनि, करि दरमन बहुजीव । कैयक तदभव पार है, मनुज मुनिंद सुजीव ।।१७।। कंयक जनमांतर तिरे, पावै निजपुर वाम । सुखदाई संसार मैं, केवल ज्ञान प्रकार 1।८१८।। तारण तरण दयानिधि, जीवन मुक्त मुनिद । प्राप मात्र ही गात्र मैं, बमें देव जोगेन्द्र ।।१६।। इन्द चन्द असुरिंद प्रेर, रवि नरिंद नागिंद । हरिविन्द अहमिद खग, रटें जतिद गोरगद ।।५२०१६ आयु लार ही गोष कौं, नाम रूप को नासि । वादर मुषिम गात्र हरि, वेदनि कर्म विनास ॥२१॥ कर्म भर्म हरि शुद्ध व वसं भावपुर माहि । सो विदेह मुक्तो प्रभू, कहिये संसै नाहि ॥८२२।। ज्ञान रूप चिद्रप सो, ह अनूप जग भूप । फेरि न जनमैं जगत में, ई अविनासी ला1८२३॥ शूल देह पर सूषिमा, बहुरि न धार धीर । व अनंत स्वरूप निज, चिनमुरति असरीर ।।८२५॥ जगत सिरोमरिग भावपति, लोक सिखरि सद् प । निज सुरूप मै नित्य ही, करें निवास अरूप । ८२५।। अंतर प्रातम राम की, कथा प्रबोध प्रकास । पढे मुनै अर सरदहै, सो पावै सिव वास ।।८२६॥