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महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
क्षीण कषाय जती यती, क्षीण मोह मुनिराज । हत विघन की वेगिदे, सज सिद्धि के साज ।।८०२।। दरसन ज्ञानावरण की. परकति सबै विनासि । साधक भाव समेटि ले, केवल भाब प्रकासि ।।८०३।। घाति कम कौं घाति के, ह्व कैवल्य स्वरूप । अंतरातमा यह यकी, ह्र परमातम रूप ।।८०४।। जैसे राजा नीति करि, महाराज ह्र वीर । तैसे अंतर प्रातमा, ह्र परमातम धीर ।।८०५।। जाने लोक अलोक सहु, एक समै मैं सोइ । भानं संमें भविन के, केवल ज्ञानी होय ।।१०६।। ज्यौं नरिन्द्र राजेंद्र ह, धारि पराक्रम धीर । त्यौं जोगिन्द्र जिनेन्द्र हातम बल करि वीर ।।८।। पायु प्रमाण सरीर मैं, तिष्टे सरर्वाग देव । जीवन मुक्त दसा धरै, करें सुरासुर सेव ।।८।। करि दरसन मुनि सवद की, उत्तम कुल नर देह । कैयक तप प्रत धारि के, मुनिवर होहि विदेह ।।८०६।। कैयक मानव तिर तथा, शरि अणुबत सार। स्वर्ग पाय नर होय फिरि, तप करि ह भव पार ।।८१०।। कैयक सुर अथवा असुर, गहि करि सम्यक ज्ञान । करि पूरण थिति होय नर, पाव पद निरवान ।। ८११।। स्वर्ग निवागो देवजे, ते सुर नाम वखानि । मध्यलोक पाताल के, देव असुर परवानि ।।८१२१॥ देव जोनि के भेद हैं, देव दैत्य द्वय रूप । स्वर्ग निवासी बहुमुखी, दीरध आयु सुरूप ॥८१३॥ मंद कषायी हर्ष अति, अलप विषाद विवाद । मन्त्र वातनि मैं अति निपुन धारै अलप प्रमाद ।। ८१४।।