________________
विवेक विलास
गुर विवेक प्रोहित धरम, दरसन चारित दोय । सब उमरावनि के सिरे, अति कोडीभड होय ।।७६६ ।। निज स्वभाव उमराब बहु, निज निधि है भंडार । है बीरज सेनापती, भंडारी स्वविचार ।।६।। संजम तप आदिक सुभट, गुगासेना अति साथ । द्वारपाल संवर महा, ध्यान खड़ग नृप हाथ ।।७६१।। व्रत बगतर सील सर, धीरज धनुष महीप । धा नपथ मार ने, नौ जननी : अरणाचार हर नीतिधर, शुभाचार कुटवाल । मूलोत्तर गुण है प्रजा, सावधान भूपाल ।। ७६३|| पावन पुण्य स्वभाव से, पासवान परवीन । टारे पाप सुभाव कौं, सदा स्वामि आधीन |७६४।। मित्र महा वैराग से, हितकारी नप पासि । मदति भगति भगवंत की, दे सब सुख अघ नासि ।।७६५।। नृप के अदभुत अनुपमा, सामग्री समतादि । हारे जाते मोह रिपु, डरै राग दोषादि ।१७६६ ।। अवतपुर पर देसव्रत, इन माही गढ़ रारि । परमत पुर प्रागं प्रगट, लेय मोह को मारि ।।७६७।। कैसे मारे मोह कौं, सो तुम सुनहु उपाय । अप्रमाद पूर मैं हरण, सूर नारक तिर प्राय ।।७६८|| भाव अपूरव करणपुर, तहां हत हास्यादि । अनिवर्तापुर में हों, वेद तीन संदादि |७६६ ।। पाछ मूषिम क्रोध अर, मान कपट रिपु काटि । सांपराय सूषिम धरा, लेय मोह दल ठाठि ।।८००।। सूषिम क्रोध पछारि के, पूरी पारै मोह । भंग होहि भूपाल पैं, राकिस रागर द्रोह ।।८०१।।