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महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
विष वापी वर्णन यहै, पढ़े सुने जो कोइ । सो न परै वापी विषै, घट घट व्यापी होय ।।७३४।।
।। इति विषय बापी वर्णनं ।।
, दोहा रस कूप वर्णन--
ज्ञांन कहै सब भाव को, सब सुख दायक देव । नायक है रस कूप कौ, करै सुरासुर सेव ॥७३५।। रस न कूप न निज रूप सौं, परम सुधारस पूर | है अरूप अनि रूप जो, मकल दोष तें दूर ।।७३६।। नाहिं सुधारस ज्ञान सौ, अमरण करण अनुप । हरै भ्रांति अति शांतिकर, ताप हरण गुण भुप ।।७३७।। अवर नाम रस कूप को, रतन कूपहू होय । रोर अवोध मिथ्यात हर, राग रोग सुर सोइ ।।७३८१॥ अदभुत गुण मणि सौ भरयों, इह मरिण कूप महत । रमवा जोगि निरंतरा, र, मुनीसुर संत ।।७३६।। अमृत कूपनि कूप इह, निज भावन की केलि। कर शुद्ध भवि जीव कौं, देय दोध को ठेलि ।।१४०।। याके तटि अति सघन वन, चिदघन आनंद रूप । इहै कूप निजपुर निकट, जहां राव चिद् प ।।७४१।। कपट कीच नहि या विष, रहै न मोह पिसाच । इद्री भूत न पाइए, मांनि वारता सांच ॥७४२।। जहां नाहि चितामयी, कृमि कीटादिक कोइ । मीन दीनता भावमय, तिनको नाम न जोय ।।७४३।।