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प्रस्तावना
१९०० तक जितना जबरदस्त साहित्य-लेखन का कार्य किया, उसने देश में साहित्य के प्रति नवीन क्रान्ति पैदा की और इससे समाज में नव चेतना जागृत हुई। नये नये ग्रन्थों की मांग होने लगी और उसकी पूर्ति भी हमारे इन्ही विद्वानों ने की। यहां हम ऐसे ही कुछ प्रमुख विद्वानों का परिचय उपस्थित कर रहे हैं
भूधरदास :
दौलतराम एवं भूधरदास की भेंट सर्व प्रथम भाग में हुई थी । दौलतराम के अनुसार भूधरदास आगरे की अध्यात्म शैली के प्रमुख विद्वान थे । माहगंज में रहते थे। ये अधिकांश समय जिनेन्द्र पूजा एवं भक्ति में लवलीन रहते थे । भूवरदास का जन्म कब और कहां हुआ ? उनकी शिक्षा-दीक्षा कहां हुई तथा वे जीवन भर क्या करते रहे, इसके सम्बन्ध में कवि की रचनाएं मीन है । कवि को संस्कृत एवं प्राकृत ग्रन्थों का अच्छा ज्ञान था। पुराल साहित्य का उन्होंने अच्छा अध्ययन किया था - जिसका स्पष्ट प्रभाव उनकी रचनाओं में मिलता है। कवि खण्डेलवाल जैन थे तथा एक विद्वान के अनुसार उनका भी गोत्र कासलीवाल था । अतः दौलतराम जब आगरा पहुंचे तो दोनों कवियों में अनिष्ट सम्बन्ध हो गया ।
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'सूरदास' का साहित्यिक जीवन संभवतः अधिक लम्बा नहीं रहा । उन्होंने अपने जीवन के अन्तिम १५-२० वर्ष ही साहित्य सेवा एवं लेखन में लगाये। उनकी प्रथम वृति जैन शतक है जिसे उन्होंने संवत् १७८१ पौष कृष्णा १३ रविवार के दिन समाप्त की थी। इसकी रचना महाराजा सवाई जयसिंह के सूबा हाकिम गुलाबचन्द की प्रेरणा से हुई थी । गुलाबचन्द शाह हरीसिंह के वंशज थे; जो धार्मिक प्रकृति वाले व्यक्ति थे तथा प्रागरा प्राने पर उसने कवि से निवेदन किया था -
मागरे में बाल बुद्धि भूधर खण्डेलवाल,
बालक के ख्याल सों कवित्त रच जाने हैं । ऐसे ही करत भये जैसिंघ सवाई सूबा,
हाकिम गुलाबचन्द आये तिहि ठाने है ।
हरीसिंह शाह के सवंस धर्मरागी नर,
तिनके कहे स जोरि दीनौ एक ठाने है ।