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________________ ११६ महाकवि दौलतराम कासलीवाल - व्यक्तित्व एवं कृतित्व निज समीप गंगा सदा व अखंडित धार । " करें सनान जुता तिष, सो पावै भव पार ।। ५१६७ ॥ इति निज गंगा मिरूप दोहा आशा वैतरणी विप नदी वन आसा नाहि घरे प्रभू, सत्र वांछा ते दूर बंदौ परमानंद जो, गुरण अनंत भरपूर ||५.१७ | विष कलोलनी विश्व मैं नहि बांछा सी कोय । , विष नहि विषै विकार सौ भव भव दुख दे सोय ।।५१८ || प्रासासी न तरंगनी, त्रिषा सीन तरंग । भवरण न संसं सारिखो, नहि तिरिब को ढंग ।।५१६।। भरी चा विष नीर तें, नहीं ताप हर एह । कपट कीच कालिम मइ, भवि जन करें न नेह ।। ५२०॥ विकलप संकलपाति से, और नहीं दुख रूप । सो द्वय तट धारे सदा, आसानंदी विरुप ।। ५२१|| विष वन विषम विभाव से, और नहीं जग मांहि । सो याकै तटि दीसइ, जिनमे छाया नांहि ३५२२॥ विष वेलिन ममता जिसी, सो आसा कँ तीर । फलै सदा दुख बिषफला, जहां न अमृत नीर ।। ५२३|| राग दोष की खानि 1 प्रारण हरा परबानि ।। ५२४ ।। भ्रांति रूप जगवाय | इह भासें मुनिराय ।।५२५३३ उपजावै जड़ता इहै, क्षार महा दुरगंध है, वाजें जहा विरुष प्रति सोइ उड़ाई जगत कौं, "
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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