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________________ --- प्रस्तावना विलास एवं प्रात्म-द्वादशी कृतियां लिखी थीं । ये पाटनी गोत्र के श्रावक ये तथा पिता का नाम चतुर्भुज था। २. दौलतराम: ये असनी (फतेहर) के निवासी थे । और इनके पिता का नाम शिवनाथ था । इन्होने लगभग १८६७ में प्रलंकार संग्रह एवं कविप्रिया पर टीका लिखी भी। ये जैनेतर विद्वान थे। ३. दौलतराम : ये मारवाड़ नरेश महाराजा मानसिंह के प्राश्रित थे। इनका समय संवत् १८६३ के लगभग माना गया है। इनकी एफ रचना "जालंधर नाथ जी रो गुरण” उपलब्ध होती है। ४. दौलतराम : ये मैनपुरी के रहने वाले थे। जाति से कायस्थ थे। उनकी एक लघु कृति "ज्योनार" नाम से मिलती है। ५, दौलतराम : ये हाथरस के रहने वाले थे । इनका जन्म संवत् १८५५-५६ में हुभा । इनके पिता का नाम टोडरमल एवं जाति पल्लीवाल जैन थी। कपड़े के व्यापार के साथ कविता बनाने की भी इनकी प्रारम्भ से ही रूचि थी। इनके प्राध्यात्मिक एवं भक्ति परक पद अत्यधिक उच्चकोटि के मिलते हैं, जो १०० से भी अधिक संख्या में हैं। इनकी 'छहढाला' के लघु होने पर भी जैन समाज में अत्यधिक लोकप्रिय है। तत्कालीन साहित्यिक वातावरण कविवर दौलतराम का समय सं० १७४६ से १८२६ तक रहा है। उस समय राजस्थान का साहित्यिक वातावरण कैसा था -इस सम्बन्ध में यहां कुछ विचार करना है। यह तो निर्विवाद रूप से सही है कि उस समय तक हिन्दी भाषा की प्रतिष्ठा हो चुकी थी और उसके चार स्तम्भ कबीरदास, सूरदास, मीरा, तुलसीदाम जैसे महाकवि हो चुके थे तथा ही रस्ह, सधार, ब्रह्म जिनदास, रलकोति, कुमुदचन्द्र, बनारसीदास, राजमल्ल जैसे जैन कवियों ने भी अपनी हिन्दी रचनानों के माध्यम से हिन्दी को पूर्ण रूप से अपना लिया था। उधर भामेर में हिन्दी का अच्छा वातावरण था और यहां कितने
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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