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बिफ बिलाम
मोहादिक दोषीनि के हरण हार सुखदाय ! है अनेक जोधा महा, को लग कहै बनाय ॥१६॥ तिनकों लारै लेय तू, लंधि ठगनि को गाम । निजपुर मांहि असौ महा, जहां न ठग को नाम ॥१६४॥ ठग ग्राम को वर्णना, पढे सुने जो कोय । ठग ग्राम की लंघि के, निजपुर वासी होय ॥१६५।।
निज बोलत विलसै महा, रमै सदा निज मांहि । . जामण मरण कर नहीं, ममता मोह नसाहि ॥१६६।।
॥ इति उग ग्राम वर्णनं ॥
निज वन निरूपण
दोहा निज वन में क्रीडा करै, क्रीडा सिंधु कृपाल । ताहि नमू कर जोरि के, जाहि न व्याप काल ।।१६७।। वन नहिं निज बन सारिखो, है अमरण वन एह । अमरोद्यान कहैं जिस, परमानन्द अछेह ॥१६८।। सही अभवन ए सही, सदा अभैपुर पासि । अति रमणीक मनोहा, सुख अनन्त की रासि ।।१६६।। इह. केली वन हंस को, हिंसा रहित अनूप । रमै सांत रस धारका, परमहंस चिद् प १३१७०।। महिं कोइल संसार में, प्रातम कला समान । रसीया प्रातम केलि के, निज वन वंसिया मानि ।।१७१।। 'ज्ञान अभै वन मारगा, ज्ञानी जीव विहंग । तेहि रमै निज यन विष, क्रीडा कर अभंग ।।१७२।।