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________________ विवेक विलास बडे ठगनि मैं दोय ठग, राग दोष बिड़ रूप । लिनके भुज परताप ते, मोह जगत को भूप ।।११२।। राग समान न राग कर, और सिकारी कोइ । वस करि सुर नर पसुमि, मारै : १६३।। हरे ज्ञान से प्राण जो, हरै ध्यान सौ माल । लीयां कपट पर कालिमा, कर बहुत वेहाल ।।११४।। राग प्रीया जु सरागता, जाहि कहै जग प्रीति । जासौं करि अप्रीति मुनि, हीहि मुक्ति जग जोति ।।११५।। विष प्रीति अनुरागता, अदभुत ठगनी सोइ । ठग चक्र वर त्यान कौ, वचै कहां तक कोई ।।११६।। दोष समान न दुष्टधी, जगत विरोधी जानि । करै दौर त्रय लोक में, दौरी खरी प्रवानि ।।११७।। हर शुद्धता भाव जौ, हरै दया सौ दर्य । महा निरदयी दुरमती, धारं अतुलित गर्व ।।११८।। दोष प्रीया दुर्जन्यता, महा दुष्टता होय । ठग जु असुरिन्द्रादि को, हरि प्रति हरि कौं सोय ११६ ।। काम नाम ठग अति प्रबल, तासम नांहि कुचील । कर फैल बद फैल वहु, हरै जगत को सील ।। १२०॥ कंवर समान जु मोह के, महा पाप को धाम ठग देव दैत्यानि कौं, नर पसु सब की काम ।।१२१।। काम प्रीया रति अति बुरी, भव भरमावे सोय । अनुपम ठगनी है भया, व्रत तप हरणी जोय ॥१२२।। कंटिक कोइ न क्रोध सौ. हरै प्राण तहकीक । हर बुद्धि सौ धन महा, वोल वचन मलीक ।।१२३।। उघडौं हथ मारो इहै, महा मोह उमराव । करता हरता मोह कै, धारै कुवुधि कुभाव ।।१२४।।
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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