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________________ ८२ महाकवि दौलतराम कासलीवाल- व्यक्तित्व एवं कृतित्व निश्च देव निजातमा, व्यवहार गुरदेव । तिरं भवोदधि ते नरा, करें निजातम सेव ।। १०३ ।। जैसे चेतनराव सौं, और न दूजो राव | तैसे व्रत में सील सौ और न कोइ कहाव ||१०४॥ ॥ इति निजधाम निरूपणं ॥ श्रागे ठग ग्राम का वर्णन करें है । दोहा ठग ग्राम वर्शन- ग्राम ठगनि केलें प्रभू, काठै त्रिभुवन राय । पहुँचावै निजपुर दिषै, ताहि नमू सिर नाय ॥ १०५ ॥ रेजन तू निज नगर में यह ठगनि को गांम | की लग कहिए नाम ।। १०६ ।। सकल ठगति को राव | ठग मोहादि श्रनन्त है, मोह महा वंचक कुधी, ठगे कर्म ठग संवनि को मोह राव परभाव ।११०७ ।। मोह पासि सी है दे फांसी जग जीव के J नहीं, फांसी जग में आन । हरें मोह गुण प्रान ॥ १०८ ॥ दीरघ निद्रा कोइ | ज्ञान चेतना खोइ ।। १०६ ।। नहीं मोह निद्रा जिसी, सो सब जग मोह बसि, मोह प्रिया ममता महा, तिसी न ठगनी जोइ । ठगै सुरिन्द्र नरिन्द्र कौं, महा मोहनी सोइ ॥ ११० ॥ मायाचारी मोह ठग, इसी न जगत मझार । मोह महा मुनीनि कौं, सुर नर कपा विचार ।। १११॥
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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