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महाकवि दौलतराम कासलीवाल- व्यक्तित्व एवं कृतित्व
निश्च देव निजातमा, व्यवहार गुरदेव । तिरं भवोदधि ते नरा, करें निजातम सेव ।। १०३ ।।
जैसे चेतनराव सौं, और न दूजो राव | तैसे व्रत में सील सौ और न कोइ कहाव ||१०४॥
॥ इति निजधाम निरूपणं ॥
श्रागे ठग ग्राम का वर्णन करें है । दोहा
ठग ग्राम वर्शन-
ग्राम ठगनि केलें प्रभू, काठै त्रिभुवन राय । पहुँचावै निजपुर दिषै, ताहि नमू सिर नाय ॥ १०५ ॥ रेजन तू निज नगर में यह ठगनि को गांम | की लग कहिए नाम ।। १०६ ।। सकल ठगति को राव |
ठग मोहादि श्रनन्त है, मोह महा वंचक कुधी, ठगे कर्म ठग संवनि को
मोह राव परभाव ।११०७ ।।
मोह पासि सी है दे फांसी जग जीव के
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नहीं,
फांसी जग में आन ।
हरें मोह गुण प्रान ॥ १०८ ॥ दीरघ निद्रा कोइ | ज्ञान चेतना खोइ ।। १०६ ।।
नहीं मोह निद्रा जिसी, सो सब जग मोह बसि,
मोह प्रिया ममता महा, तिसी न ठगनी जोइ । ठगै सुरिन्द्र नरिन्द्र कौं, महा मोहनी सोइ ॥ ११० ॥ मायाचारी मोह ठग, इसी न जगत मझार । मोह महा मुनीनि कौं, सुर नर कपा विचार ।। १११॥