SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाकवि दौलत राम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व महाराजा कुमार माधोसिंह को सेट में जमने दीनाप पुर र दिया गया और सम्मान सूचक सिपाव दिया । उदयपुर जाने के पश्चात कवि को अपनी कार्य कुशलता दिखाने का अच्छा अवसर मिल गया । इनकीसेवायों से प्रसन्न होकर महाराजा जयपुर ने संवत १७६४ एवं १८०० में उदयपुर में ही सिरोपाव भेजकर इनकी सेवाओं का मूल्यांकन किया। संवत् १८५३ में जब कवि उदयपुर दरवार में जयपुर महाराजा की और से वकील थे तो दरवार के रनवं के लिये इन्हें १५० भेजे गये । त्रेपन क्रियाकोश में इन्होंने अपने प्रापको "पानन्द सुत जयसुत को मंत्री जय को अनुचर" लिखकर एवं जीवधर स्वामी चरित में 'दौलतराम उकील पुत्र प्रानन्द को हौई" लिखकर अपना परिचय दिया है ! । आगरा के समान उदयपुर में भी ये तत्कालीन समाज समाज में सम्मानित व्यक्ति माने जाने लगे थे। नगर की धानमंडी के दि० जैन अग्नवाल मन्दिर में ये प्रतिदिन जाते थे। इन्होंने आगरा के समान उदयपुर में भी एका ग्याध्यात्मिक संली स्थापित की और स्वयं ही शास्त्र प्रवचन करने लगे । वहां आने के वृछ ही वर्षों के पश्चात् इन्होंने 'बेपन क्रियाका' की रचना की । यह ग्रंथ कवि की स्वतन्त्र कृति है. जिसमें श्रावकों के प्राचार-धर्म का विस्तृत पणेन विया गया है । 'बेपन क्रियाकोश के पश्चात् ने 'अध्यात्म बारहखड़ी' की रचना में नग गये। यह कवि की सबसे बड़ी पात्मक वृति है। भक्ति एवं अध्यात्म की इस अनूठी कृति को लिखने में कितना समय लगा होगा । इन्होंने संवत् १७६८ नं इसे विशाल कृति को समाप्त करके अपनी साहित्यक प्रतिभा के चार चांद लगा दिये । इस कृति के निमगि रात्रि की यशोगाथा और भी फैल गयी और अब उनकी चर्चा चारों भोर होने लगी। बारहखड़ी संज्ञक रचनाओं में इसका महत्वपूर्ण स्थान है और कवि के विशाल जान का परिचयाय है । उदयपुर उनके लिये वरदान सिद्ध हुआ और साहित्यिक क्षेत्र में उन्होंने यहां रहते हुए महान् सेवायें की । सं० १८०५ में उन्होंने "जीवधर चरित" नामक प्रबन्ध काव्य को समाप्त किया, जिसके निर्मागा का याग्रह बहीं के कुछ श्रवकों ने किया था। इसके पश्चात ये और भी साहित्यिक सेवा में लग गरे । "जीवन्धर चरिल" हिन्दी का प्रबन्ध वाव्य है: जिसमें कवि ने अपनी काव्य प्रतिभा का अच्छा परिचय दिया है । कवि का उदयपुर में बहुत सम्मान था। शासक एवं शासित दोनों ही वर्गों में ये लोकप्रिय थे। वक्तृत्व शक्ति के धनी थे तथा तथा लेखन शक्ति इन्हें जन्म से ही प्राप्त थी। इसीलिय उदयपुर प्रवास में ये वहां सर्वप्रिय बन गये । स्वयं उदयपुर महाराणा की इन पर विशेष कृपा
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy