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जीर्वधर स्वामि चरित
जामैं क्षेत्र जु भरथ है इह, ता माही षट खंड है। पांच मलेछ जु खंड कहिया, इक पारिज परचंड है ।।१।। पारिज खंड मझार, देस कहिये जु अनेका। तिन देसनि के माहि, देस मेवाड़ जु एका ।। उजियापुर ता माहि, राजधानी अति सोहै । जगतसिंह महरांण, पाट सीसोदिन का है ।। मडी धान की नगर माही, महादेव मंदिर कहा। तहां टहलवा पंडितो इक, खेतसीह नामा कहा ।।२।। दौलतराम उकील, पुत्र प्रांनद की होई । ढुढाहड़ पतिराज, तिनों को सेवक सोई ।। वासी वसवा को जु, जाति कहिये जु महाजन । गीत कसिलीवाल, मांहि खंडेल जु वालन ।। कुल श्रावक के जनम पायो, कछुयक थु त परचे जिस । महारांण के निकट कूरम, महाराज भेज्यौ तिस ।।३।। रहै रंग के पास, रांग अति किरपा करई। जाने नीको जाहि, भेदभाव जु नहि घरई ।। सो जिन मंदिर प्राय, वांचई जिन मत ग्रंथा । सुनै विवेकी जीव, सरदहै जिनवर पथा ।। केयक के रुचि बहुत नीकी, मागम अध्यातम तनी। वांचे ग्रंथ कितेक ताने, संली अति सोभित बनी ।।४।। बांच्यो महाँ पुराण, बीस हज्जार सिलोका। जाकै अंति अनूप, बीर चरित जु गुग्ग थोका ।। जाम कथा रसाल, स्वामि जीवंधर केरी । सुनि करि हरणे भव्य, स्तुति कीनी जु धणेरी ।। तवं वोलियो अग्रवाला, वासी कालाडहर को। चतुर चतुर भुज नाम चरची, ग्रंथ पंथ सिव सहरको ।।५।।