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महाकवि दौलतराम कासलीवाल - व्यक्तित्व एवं कृतित्व
मिथ्या मोह मदादि, तिन महें एक न राखौ । सम दम यम अर नेम, ध्यान अमृत रस चाख्यौ || तजी प्रमाद विषाद सारा, नांहि विवाद जु उरधरीं । भवतन भोग विरत चित्ता, दिढ़ वैराग जु श्रनुस ।।१२४ ।। जिन श्राज्ञा उर धारि, धरों रतनत्रय विमला ।
लखो आपनी रूप, शुद्ध किये कुमर्ण अनंत, अव श्रक्षय पद आनंद लहो,
बुद्ध जु अति अमला ॥ घरों परम समाधी । तजि जगत उपाधो ॥ इह जीवंधर चरित पुरन, भास्यों महापुरांन में । श्री सुधर्म गणधर महंता ल्याये याहि वषांन में ।११२५
इति श्री जीवंधर स्वामि चरित्रं समुरगृहात् निजगृहे गमन परमोत्साह, काष्टांगारिक प्रश्न कोप, मंत्रिवचनानुपशांति, रत्नवतो स्वयंवर, चंद्रक वेष शेषन, वरमाला गृहण, काष्टांगारिक र पोद्यम तात भृत्यान्प्रति पत्रिका प्रेषरण, सुभटागम, रखे काष्टांगारिक हुन्न, राज्य लाभ, विजया माता श्रागमन, सर्व कुटुंब मिलन, प्रजापालन सुखानुभवन, सुरमलयोद्याने झोडा हेतु गमन, वरधर्म मुनि दर्शन, भ्रातृ सहित अरण व्रत ग्रहण, अशोक बने कपि युद्धावलोकन, संसार बेह भोग निगता तत्रैव वने एकान्त स्थाने प्रशस्त वंक नामा चारण मुनि दर्शन, पुनर्भब अबरण गृहे गमन, जिन पूजारश्वन, सुरमलयोद्याने श्री वद्धमान स्वामि समवसरणभिमन श्रवण तत्रागमन, ससुर भ्रातृ मातृ भार्यादि सहित दीक्षा गृहरण, केबलोत्पत्तिमोक्ष गमन वनो नाम पंचमोध्यायः ||५|
कवि परिचय
कौन भांति इह ग्रंथ देव भाषा भाषा । भयो सु सुनौं धरि वित्त, इक हर राखा ॥
मध्य लोक कं मांहि, सकल दीपको एह, दीप
सोहए जंबूदीपा | मान श्रबनीषा ||