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महाकवि दौलतराम कासलीवाल - व्यक्तित्व एवं कृतित्व
देव भाष गंभीर, संसकृत विरला जांनें । पंडित करें वर्षान, अलप मति नांहि वर्षांने ॥ जो हृ ग्रंथ अनूप, देस भाषा के मांही । वांचे बहुत हि लोक, या मह संसं नाही ||
सब गिरंथ की वति न आवे तो इह जीवंधर तनी ।
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अवसिमेव करनी सुभाषा, प्रथीराज भी इह भनी || ६ || सुनी चतुर मुख वात, सोहि दौलति उरधारी । सेठ बेलजी सुधर जाति हूंमड हितकारी ॥ सागवाड है वास, श्रवण की लगनि घरी । सव सावरमी लोक धरं श्रद्धा श्रुत केरी ॥
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तिने करि कही फुनि दौलति के मन में बसी । संस्कृत तें भाष कीनी, इहै कथा है नौर सी |१७||
संवत ठार से जु पंच, आषाढ़ सु मासा | तिथि दोईज गुरवार, पक्ष सुकल जु सुभ मासा ।। तीजें पहर सु एह ग्रंथ सुभ पुरण हूवो । श्री जिनधर्म प्रभाव, सकल भव भ्रमतें जूदो ॥ नंदी विरध जगत मांही, जो लग चंद दिवाकरा । तिष्टौ भव्यनि के हिये मैं, नवरस वरान तें भरा ||८||
इति श्री जीवंधरस्वामि चरित्रं सम्पूर्ण सुभं भवतु-कल्याणमस्तु ।।६।।
"भग्न पृष्ठि कटि ग्रीवा वक्रदृष्टिरधोमुखम् । कष्टेन लिखितं शास्त्रं यत्नेम् परिपाल्यताम् ||"