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महाकवि दौलतराम कासलीवाल-यक्तित्व एवं कृतित्व
विजया माता अर सवै, सासू पाठौं जांनि । ग्रर रांनी पाठौं महा, सब ए मुग की खानि ॥१११।। भई अर्यका त्यागि घर, चंदनवाला पासि । तारै जीव अनेक कौं, एक जीवगुण रासि ॥११२॥ इह जीवंधर मुनि कथा, कहि वोले गणधार । * बुधः स्ती , अंशिक सौं निरधार ।।११३।। तुम पूच्छयो सो मुनि इहै, महा सपोनिधि वीर । सांप्रत है श्रुतकेवली, द्वादसांग घरधीर ।।११४।। म्यारि घातिया घात करि, लहसी केवलज्ञान । होसी अग्नह केवली, जगदीसुर जग जान ।।११५।। भरघमान भगवान के, साहि करिजु विहार । च्यारि अधाति यह हते, पासी भवजल पार ॥११६।। विपुलाचल परवत थकी, जासी जग के सीस । अष्टगुणादि अनतगुण, धारी अविचल ईस ।।११७।। ए. सुधर्म गणधर तने, बचनामृत नृप पीय । श्रेणिक त्रिप्त भयो महा, जनम सुकारथ कीय ।।११८||
छप्प छन्द जे गंधर्वदतादि, अष्टरानी गुन बानी । दुल्लभ और निकौंजु, तेहि परनी सुखदांनी ।। तात घात को शत्रु, दुष्ट अति काष्टांगारी । सो जाने रण मांहि, मारि डारयो दुखकारी ।। राज कियो जु कितेक दिवसां, फुनि परिगह तजिया सर्व । अष्ट कर्म से दुष्ट काटे, सकल विरद जिनकौं फर्व ।।११।। भेदि तिमिर प्रज्ञान, छेदि करि सर्व विभावा । नहि मुकति श्री संग, सोहई सुद्ध सुभावा ।।