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महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं अतित्व
नवमी परिगह त्याग है, मुनि दसमो की चाल । लौकिक वचन न भासई, जीवदया प्रतिपाल ।।७।। एकादसमी , विधि, क्षुल्लक अलि वखानि । वनवासी दोऊ. सुधी, मुनिवत भोजन मानि ॥८॥ क्षुल्लक स्खडित वस्त्र इक, अर कोफीन प्रवांनि । केस मुडावं अरवहै, नहि करपात्र बानि ॥८६॥ करपात्री है अलि सुभ, वस्त्र एक कोपीन । लोच कर के यानि को, रहै धर्म लवलीन ।।८० ॥ क्षुल्लक लौं च्यारचों वरण, धरं व्रत्त सुभ रूप। अलि अर्यका मुनिवरा, तीनहिं बर्स अनूप ।।८१॥ ए एकादस विधि कही, श्रावक की भगवान । तिनमैं दुजी. प्रादरी, जीवंधर गुणवान ॥६॥ भाइनि जुत बारह वरत, सम्यक सहित धरेय । गये प्रापर्ने परि नृपति, नर भव सफल करेय ।।६३॥ सुखसौं वीत काल अति, मृप सबके सुखदाय ।
एक दिवस बन देखिवा, गये गुणनि के राम ॥६॥ बनविहार
वन असोक रमणीक अति, तहां परसपर जुद्ध । देख्यो वंदर वर्ग मैं, त- भये प्रतिवुद्ध ।।५।। देखों देखी जीव जग, करि करि तीव्र कषाय । भमैं सदा “ब वन विधे, धरि धरि नौतन काय ।।६६ कोइक बड़े भागी पुरिष, लहि जिन मारग सार । लिखकै पातम तत्व कौं, उतरैः भन्नजल पार ।।७।। जग बिरकत मत जैन को, सधै न घरकै माहि। मोह जाल है घर विष, या मैं संसें नाहि ।।१८।।