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महाकवि दौलतराम कासलीवाल व्यक्तित्व एवं कृतित्व
एक दिवस सुर मलय पवन, कौडा त क्रिपाल । गये हुते वरधर्म मुनि, देखें तहां विसाल ॥। ६२ ।। नमसकार करि साध को सुन्यों तत्व विज्ञान । अणुव्रत ले सम्यक सहित घारयो धर्म सुप्यांन ॥ ६३ ॥ नंदायादिक भ्रात सब भये अणुव्रत धार | सम्यक जुत धरमातमा, असुभ रहित भविकार ।। ६४ ।। श्रावक धर्म वर्णन --
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सम्यक र अणुव्रतर्कों, सुनौं सुरूप सुजान धरी आपने चित्त मैं, लहो सुगति मतिवांन ॥ ६५ ॥
देव जिनेसुर जगत बर, गुर मुनिवर व्रतधार | धर्म दयामय जानिये, सौ सम्यक व्यवहार ।।६६।२
अपनों प्रतम देव है, गुर आतम ही होय । वस्तु सुभाव हि धर्म है, वह निश्च श्रव जोय ॥ ६७ ॥ अनंतानुबंधी महा, क्रोध मान छल लोभ बहुरि तीन मिध्यात ए, सात प्रकति प्रति श्रोभ ।। ६८ ।। इनकी उपसम क्षय वहुरि, अर षय उपसम होइ । तब गर्दै सप्तक त्रिविधि, मूल व्रत को सोय ॥१६६॥
सात उपम्यां उपसमी, क्षयतं क्षायक जांनि । एक उर्द है सातमी, सो वेदक परत्रांनि ॥७० || भेदक हे सम्यक्त के, अब सुनि व्रत के भेद ।
महाव्रत पर अणुव्रता, ब्ररणता द्वं त्रिधि श्रथ छेद || ७१ ॥
हिसा मिथ्या वचन अर, चोरी नारी संग |
परिग्रह त्रिश्ना पंच ए, पाप कुमति के अंग ।। ७२ ।।
सकल पाप को सर वृथा, त्याग महाव्रत जोनि ।
किंचित त्याग अणुव्रता, इह निश्चं परवांनि ॥ ७३ ॥
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