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महाकवि दौलतराम कासलीवाल व्यक्तित्व एवं कृतित्व
दौलत सूख कामा वस, जोध कासलीवाल । निज सुख कारन ग्रह कियो, सुखविलास गुणमाल ।।
कवि के छटे पुत्र गुलाबदास काअभिलेखागार के रिकार्ड मे दौलतराम का पुत्र एवं आनन्दराम का पौत्र के रूप में उल्लेन्न आया है। इन्हें संवत १८२० ब संवत् १८२४ में जयपुर महाराजा द्वारा सम्मानित किये जाने का उल्लेख भी मिलता है । इनके एक पुत्र साराम भी महाराजा जयपुर की सेवा में थे और संवत् १८२८ में इन्हें भी गावों का पूरा लगान जमा कराने के कारण सिरोपाव देकर सम्मानित किया गया था ।
दौलतराम का प्रथम पुत्र अजीशदास था जो अपने पिता एवं पितामह के समान जयपुर महाराजाओं का अत्यधिक कृपापात्र था । तथा जिसे उसकी कार्यकुशलता के कारण समय समय पर सम्मानित किया गया था। ग्रजीतदास का सर्वप्रथम उल्लेख संवत् १८८१ का मिलता है जब उन्हें मात्र परगना को वसूली का कार्य कुशलता पूर्वक सम्पन्न करने के कारण सिरोपाच दिया गय।
संवत् १८०४ में उन्हें राज्य सेवा में सिरोगाय से सम्मानित करके उदयपुर भेज दिया गया गया । इस समय स्थर कनि दौलतराम जी बहीं थे। ऐसा मालम पड़ता है कि इसके एक दो वर्ष बाद ही दौलतराम जयपुर आगये और उन के स्थान पर अजीलदार कार्य करने लगे। नंवत् १८०८ में अपने ही गांव बसवा की वसूली कर कामं इन्हें दिया गया और इसके उपलक्ष में इन्हें फर सिरोपाव दिया गया। इसके पश्चात् पुनः मनत् १८१२ में बहात्र परगना एवं संवत् १८५ 4 वामगौड़ परगने की वसूली का कार्य करने के कारण उन्हें राम्मानित किया गया । संवत् १८२१ में कविवर दौलत राम की पौत्री एवं अजीनदाम की पुत्री का विवाह या जिसमें महाराजा जयपुर की और से ३६०) की सहायता दी गई ? गंवत् १८२४ में दौलतराम के अाग्रह से इन्हें मरहठा सरदार धुमान के पास भेजा गया तब इन्हें हाथी थगन्ह पारितोपिक में दिया गया। इस प्रकार अजीतदाभ. जोधराज एवं गृलावदास के अतिरिक्त शेष तीन पुत्रों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती !
युवा होने पर महाकवि दौलतराम को एक बार कायंदण अागरा जाना पटा ! असा से आगरा १०० मील से कुछ अधिक दूर है । प्रागरा उस समय