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महाकवि दौलतराम कामलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
तव ही आय परयो सुत पावा, हाथ जोरि सिर नमि सुभ भावां । दई असीस ताहि तव माता, होहु पुत्र तुम्हरै सुख साता ।।६०।। अति कल्याण लहौं तुम लाला, मेरी प्रांखि तुही गुणपाला । हो उठी जग के सुनसरी, गर्भसंसारग धारी ।।६१।। असे वचन कहे फुनि बोली, चिरजीवो इह तेरी टोली। तुव दरसन करि लह्यो अनंदा, टूटि गये सब ही दुख फंदा १६२।। या विधि पुत्र थकी सुभ बांनी, भासत ही विजया बुधि वानी । एते ही आई सो जक्षी, जाकै माता की अति पक्षी ।।६३॥ न्हान विलेपन सब प्राभरणा, बस्त्रासन भोजन सुख करणा । पहप माल औरहु सुभवस्ता, आठनि कौं दीनी परसस्ता ॥६४॥ कियो साहिमी बछल जाने, साधी जिन मारग विधि ताने । करि सतकार गई निजधामा, धर्मवती अति ही अभिरामा ।।६।। साची मित्रापन है एही, आपद मैं त्याग न सनेही । मात लख्यो इह सुत बड़ भागी, प्रथ्वी को नायक गुणरागी ।।६६।। बुद्धि निधान पराक्रम धारी, अरिगंजन सज्जन सुखकारी । तव याकौं एकांत जु लैक, समझायो प्रति सिक्षा देकै ॥३||
माता द्वारा पूर्व वृतान्त कथन - सस्पंधर तेरी निज ताता, मगर रामपुर को सुखदाता। महाराज राजनि को राजा, सूरवीर सावंत समाजा ।।६८।। ताको जुद्ध विर्षे हति भाई, काष्टांगारिक राज कराई। सो अति नीच तिहारौ सत्रु, तुम तो सब जीवनि के मित्रू ।। ६६ ।। तात तनें थानक को त्यागा, तुम की जोग्य नहीं वड़ भागा । इह सुनि माता को आदेशा, कियो पुत्र परमांन असेसा |७०।। सुनिक तात घातप्रति कोपा, उपज्यो अरिपरि सब सुख लोपा । तो पनि दाव्यो हिरदा माही, काहू सौं प्रगट्यो कळू नाही ॥७१॥