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________________ जीवंधर स्वामि चरित मिष्ट वचन करि अति संतोषी, चले इहां तै षट ए सोषी। मारग मांहि लुटेरा आये, तिनसौं ररण करि तुरत भगाये ।।४६ ।। अपनी इछा जात? ते ए, सूरचीर बहु बुद्धि जुते ए । प्राय पहोंचे पुर के पासे, कहीं वात इक और प्रकासे ।।५०।। अति हेमाभ नगर को साथा, लुट्यो भोलनि जांनि अनाथा । राजद्वार मैं लोक पुकारे, तत्र जीवघर अाप पधारे ||५|| जाय भगाय दये वनपाला, वनियनि कौं घायो सव माला । तब करि भील मदति षट भाई, लरे भ्रात सौ अति सुखदाई ।।५२।। जीवधर से मिलन लखि कै निजं भाई कौं नीरा, नाम पत्र जुत भेज्या तोरा। तब जान्यो जीवघर एहो, मधुरादिक आये अति नेही ।।५३।। मिले परसपर आठौं भाई, ए द्वे अर वै घट गुणराई । नगरि रामपुर की सहु वातां, जीधर पै करी विख्यातां ।।५४।। कैयक दिन ह्या करि बिसरामां, कबर लेय चले निजधामा । पाये दंडक बनबर वोरा, आठौं धीर हरे पर पीरा ।।५।। माता से मिलन तहां लखी विजया गुरगखांनी, अति विलाप जुत सोक निघांनी । सुत सनेह ते अांचल जाके, भरि पाये ऐ करि अति ताके ।। ५.६।। अश्रुपात परिपूरणा नैना, अति दुरवल तन सर बोलत बैना । वहु चिंता जुत है संतप्ता, जटो भूत सिर केस विषिप्ता ।।५७।। नित्य निरंतर उश्न निसासा, तिन करि विवरण अधर उदासा। अति मलीन जाके सब दंता, सर्वाभरण रहित दुखवंता ।।५८।। ज्यौं प्रदुममि की रकमणि माता, त्यों निज सुत कौं इह सुभ गाता । चितवंती निज चित्त मझारा, सुत वियोग को दुख अतिभारा ।।५६ ।।
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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