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________________ १० महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व तहां थकी फुनि गमन करि, कैयक दिन के मांहि । पहुचे पुर हेमाभ ए, सुखसौं काल गमांहि ।। ३८| छंद वेसरी जीवंधर की तलाश में छहों भाइयों का प्रस्थानअब तुम सुनौ और विरतांता, खग पुत्री जीवंधर कांता। मधुरादिक षट भाइनि तासौं, पूछी बात छिपी नहि जासौं ।। ३६।। कहु गंधर्वचसा सुखदाई, कहां गये हमरे द्वै भाई । तू सव जाने विद्या रूपा, पतिव्रता जिनधर्म सुरूपा ।।४।। तव वोली विद्याधर पुत्ती, अति परवीन बहुत गुण जुत्ती । सुजन देस हेमाभ सुनग्रा, बहु नग्रनि मैं सो गनि प्रग्ना ।।४।। तहां विराज दोऊ भाई, अति सुखिया सब कौं सुखदाई । तुम चिता कबहू मति प्रांनौं, मेरे वचन जथारथ मांनो ।।४२।। तव ए छहों परम अनुरागी, चले भ्रात देखन वड़ भागी। मात पिता की आज्ञा लेके, सब ही कौं सुख साता देके ।।३।। मारग मैं दंडक वन माही, प्राय नीसरे संस नांही। देखन कौं तपसिनी प्राई, अद्भुत रूप देखि सुख पाई ।। ४४।। माता विजया से मिलन - इनकौं लखि करि विजया माता, पूछयो कहां जाहु सुखदाता । अर पाये किस दिसतै भाई, तब इन वात कही समुझाई ।।४५।। सुनि करि विजया लहि संतोषा, जानी ए सव ही गुण कोषा। है मेरे सुत को परिवारा, तव इनसौं वोली व्रतधारा ।।४६।। आजि इहां वसि करि तुम जावो, अर भाई कौं इत ही लावो। लखि जोवंधर को सौ रूपा, इन जांनीया अतुल अनूपा ॥४७॥ होइ किधों जीवंधर माता, धर्म धारिणी अघ की घाता । तब तिन कयो करें हम योही, माता तुम पाग्या दी ज्योंही ।।४।।
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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