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________________ महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व वडी सेन साथे सुपंथा मझारे, लख्यो एक तालाब डेरा जु बारे । गये लोक पानी भरीवा कितेई, से दुष्ट भासानि पौर घगई ।।२।। सुनी वात स्वामी जवै चित्त माही, विचारी निसंदेह मांखी जु नाही । इहां कारणो और होई सुकोई, तव चितयो जल भोरी जु सोई ।।३।। चित ताहि भायो हितू जक्ष राया, विडारी महा खेचरी नाम माया । सही खेचरै लेय प्रायो जु पावां, तवै आप पूछी तिस सुद्ध भावां ।।४।। किस हेत रोक्यो इह तें तलावा, तवं खेचरो भासई आप भावा । पूर्वभव कयासुनौं भध्य मेरी कथा चित्त लाये, मारे हि भाग इहां आप पाये ।।५।। हुतौ एक माली धनाग्यो महंता, पुरे रामनग्ने वसे पुष्पदंता । 'त्रिया' नाम ताकं मुकुसुमभी है, सुतो जाति भट्टो सु संगाचरी है ।।६।। तहां ही वसे जू धनंधत नामा, त्रिया नाम नंधी सती सील धामा । सुतो नाम चंद्राभ मेरो सखा सो, सही जैनधर्म जिनधीस दासो ।।७।।
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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