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जोधर स्वामि चरित
सुनि करि याके वचन संवनि में, जानी वात प्रमाना। पूरव नेह थकी इनि प्रांनी, और न कारण जाना ।।१२।। सवै क्रोध तजि भये सांत चित, जोर्वधर ततकाला। पुछि सुमित्र वहुरि दिमित्र, छोडे अटवी पाला ।।१६३।। हरिविक्रम वनराज दुहं सौं, क्षमा भाव करि भाई । घर को विदा किये तजि दोषा, जिनमति रीति सिखाई ।। १६४|| सत पुरषनि के धरमिक सौं हित, धरम समान न कोऊ ।
ह्या से गये नगर हेमाभ जु, दुखियनि के दुख खोऊ |1१६५|| दोय तीन दिन रहे तहां फुनि, नगर सोभपुर आये । श्रीचंद्रा नंया कंवर कौं, दई तहां पररणाये ॥१६६॥ अति विभूति सौं भयो विवाहा, जोरी मिली समाना। धन जोवन विद्या गुरण पूरा, दोऊ रूप निधांना [1१६३।।
इति श्री जोवधर-स्वामी-चरित्रे महापुराणानुसारि वालावबोध भाषायां पवमोत्तमा विषापहार, पमोत्तमा विवाह, सहलकट पैस्यालय कपाट स्वयमेबोवघटन, सोमसुदरी विवाह, धनुबेंद प्रवीणता, हेमाभा विवाह, नंदाप मिलन श्रीचंद्रा नंदाश्य पूर्वभव-वर्णन, श्रीचंद्रा हरण, किरातो परिगमन, किरात बंधन, किरात मोचन, नगर सोभपूरे नंदाश्य श्रीचंद्रा विवाह वर्णनो नाम तुतीयोध्यायः ॥३॥
चतुर्थ अध्याय
छंद भजंगीप्रयात
जब होई चूको विवाहो विधी सौं,
तवे सीख मांगी हितू भूपती सौं । महाधीर जीपंधरा लार भाई,
सु हेमाम नग्नं चले सुखदाई ।।१।।