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महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
में गिना जाता है । जो देहली से अहमदावाद जाने वाली पश्चिमी रेल लाइन पर एक स्टेशन है। कवि ने अपनी कृतियों में बसपा का नामोल्लेख किया है किन्तु न उसे ग्राम लिखा और न नगर । बसे राजस्थान के जन ग्रन्थ भण्डारों में बसवा में लिपिबद्ध किये हुए कितने ही ग्रथ मिलते हैं इनमें "श्रिलोक चौवीसी पूजा" की प्रतिलिपि सं० १७०४ में बसवा में ही लिग्बी हुई उपलब्ध होती है । संवत् १७३३ में त्रिलोकमार की पाण्डुलिपि भी अपने आप में उल्लेखनीय है । स्वयं कवि ने "बसर्व चास हमारी जानि" कहकर अपने प्रथम निवास स्थान का 'पुण्याचव कथाकोश' की अन्तिम पुष्पिकानों में अर्णन किया है. इनके घर के सामने ही जिन मन्दिर था । रामचन्द्र शुक्ल ने अपने हिन्दी साहित्य के इतिहास में बसवा को मध्यप्रदेश का नगर माना , जो सही नहीं है ।
दौलत राम का जन्म संवत् १७४६ की आषाढ़ बुदी १४ को हुा' । इनका जन्म नाम बेगराज घ।। इनके पिता का नाम प्रानन्दराम एवं पितामह का नाम घासीराम था । ये खाडेलवाल जाशि एवं कासलीवाल गोत्र के दि० जैन श्रावक थे । कवि ने अपनी माता के नाम का कहीं भी उल्लेख नहीं किया । इनका बाल्यकाल कैसे बीता, कहाँ तक अध्ययन किया और ये किसके पास पड़े इन सब के बारे में कवि मौन हैं किन्तु इनके पिता के उच्च पद पर कार्य करने के कारण इनकी भी शिक्षा अच्छी हुई होगी । यौर ऐसा लगता है कि इन्हें संस्कृत, प्राकृत एवं हिन्दी इन तीनों ही भाषाओं की उत्तम शिक्षा मिली थी । धामिक ग्रन्थों का अध्ययन भी इन्हें कराया गया होगा । इनकी विद्वता एवं गहन अध्ययन के कारण ही यं प्रागर] की 'अध्यातम सैली' के लोकप्रिय सदस्य बन गये थे ।
परिवार :--- कवि के परिवार का विवरण निम्न प्रकार दिया जा सकता है।
१. देखियं राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की वन्य मुची चतुर्थ भाग -
पृष्ठ संख्या २८३ __ दौलतराम अानन्दराम का घासीराम का दिवारण श्री महाराजकंवार माधोसिंह का । राजस्थान राज्य अभिलेखागार रजिस्टर कोमवार सं० २१ गृष्ट संख्या ७४ जान बानि-मां श्रावक सोय, खण्डेलवाल जानहुँ सब कोय । अनि काहिए कासलीवाल प्रानन्द राम सुत वचन रसाल ।। ६२ ।।
पुण्यामब कवा को