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प्रस्तावना
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और उनमें श्रृंगार एवं विरह की कहानी कही जाने लगी। फागु, राम एव पिरक रचनाओं में खुलकर श्रृंगार रस का प्रयोग हुआ | भक्ति एव रीतिकाल में राजस्थान के जैन कवियों को सर्जना की की, लेकिन अभी उसके शतांश का भी मूल्यांकन नहीं हो सका है। अभी तो केवल बनारसीदास, भूधरदास जैसे कवियों का नामोल्लेख मात्र हुआ है और शेव सारा साहित् समालोचकों विद्वानों एवं गवेषकों की दृष्टि से अछूता पड़ा हुआ है ।
मध्यकाल में हिन्दी पुर्णत: जन भाषा बन चुकी थी और संस्कृत, प्राकृत एवं अपभ्रंश भी सामान्य जन की समझ के बाहर हो चुकी थी । जंनाचार्य एवं विद्वान् जनता की मनोभावना को पहिचान चुके थे। इसलिए उन्होंने १६ वीं शताब्दी से ही संस्कृत प्राकृत ग्रन्थों की हिन्दी वचनिका लिखना प्रारम्भ कर दिया, जिससे उनकी रचनाएं घर-घर पहुंचने लगीं । उनको न केवल धार्मिक इष्टि से अपितु साहित्यिक दृष्टि से भी पर होने लगी। आगरा, कामां, उदयपुर एवं जयपुर मे ऐनी ही संलियां, जिन्हें आजकल के शब्दों में गोष्ठियों का नाम दिया जा सकता है, चलती थी। हिन्दी भाषा में after लिखने वाले कवि जनप्रिय कवि बन गये और उनकी कृतियों का प्रचार-प्रसार घर-घर तक पहुंच गया।
ऐसे ही जनप्रिय कवियों में महाकवि दौलतराम का नाम विशेषतः है। दर दौलतराम का जन्म उस समय हुआ था; जब कनीर दास, मीरा, सूरदास, तुलसीदास एवं बनारसीदास जैसे कवि लोकप्रिय हो चुके थे और इसके साथ ही हिन्दी भाषा की नींव भी सुदृढ़ होती जा रही थी । मीरां एवं सूरदास के पद, रामायण की चौपाइयां तथा बनारसीदास के नाटक समयसार के मन्दिरों में घरों में एवं राजपथ पर चलते-चलते गाये जाने लगे थे और सामान्य जनता भी उनके प्रचार-प्रसार के लिए कृत संकल्प हो चुकी थी । प्राकृत एवं संस्कृत ग्रंथों की भाषा वचनिकाएं लिखी जाने लगी थी और सामान्य पाठक उन्हें चाव से पढ़ने लगा था। जैन कवियों का प्रमुख केन्द्र उत्तर प्रदेश से हटकर राजस्थान बन चुका था। ऐसे उपयुक्त वातावरण में कवित्रर दौलतराम का जन्म हुआ ।
महाकवि दौलतराम का जन्म राजस्थान की एक बड़ी रियासत जयपुर के तहसील स्तर के ग्राम बसा में हुआ। बसवा राजस्थान के प्राचीन नगरों
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१ बसवा जयपुर से १०३ किलोमीटर एवं देहली से २०५ किलोमीटर दूरी पर स्थित है ।