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________________ ३२ महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व सो खेमसुरों नामा, मांनी लखिमी गुण धामा । इक दिन विनयधर स्वामी, मुनि ज्ञान ध्यान विसरांमी ।।२६।। तिनको कन्या के ताता, पूछयो लखि के अति ग्याता । मेरी पुत्री कुन पर, तव महा पुरुष यों वरनं ।।३०॥ चंपो फूल ततकाला, ह्र कोकिल सवद रसाला । फुनि पाट जिनालय उघरे, जय जय रव जब वह उचरै ।।३१॥ अर फूल कमल सु बासा, ए सकल चिह्न जे भासा। जाके आने से होवे, जा करि दुखिया दुख खोवै ॥३२॥ सो व्याहै तेरी कन्या, इक पुरख धारिणी धन्या । तव ही ते राख्ने पुरुषा, जे करें सुवर की परषा ॥३३॥ ते रहत हुते या वन मैं, लखि सुनर खुशी व मन मैं । तिन जाय ततक्षरण भाई, श्रेष्ठी को दई बधाई ।।३४।। जे चिह्न वताए गुरनें, ते प्रगटे पाय चतुरनैं । तब सुनि सुख पायो अति ही, सो जाम श्री जिनपति ही ।।३।। वह दई वधाई तिनकौं, अर चल्यो मनोरम वन की। नहि मुनि के वचन अलीका, इह जांनी जिन तह कीका ५३६।। क्षेमसुन्दरी विवाह लखि जो बंधर को रूपा, जान्यों इह पुरुष अनूपा । तब निज पुत्री परणाई, पर हित की रीति जनाई ।। ३७।। फुनि करी वीनती एका, सुनिये चितधारि विवेका । इक नगर राजपुर नामा, 'सत्यधर' नृप गुरण धामा ॥३८।। हम कियो तहां निवासा, सो नगर बहुत सुखरासा । व्हां चैन बहुत ही पायो, सत्यंधर राज सुहायो ।।३।। इह धनुष बहुरि ए बाना, हमसौं करि नेह निधांना । दोनें सत्यंधर नृप नैं, तिनसौं अति प्रोति जु अपनै ।।४।।
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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