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________________ ३० महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व तव करी घोषणा पुर में, इह निश्च धारौ उर में । जो याके प्राण उवार, मरिण मंत्रौषध परकारे शा ताको एही परणाऊ, अर सीस प्रापनौं नाऊ । फुनि प्राधौ राज हु तांको, जो नर विष टार यांकौ ।।६।। तव सव पाये विष झारा, लखि लोभ वहुत परकारा। पनि विष नहि हुवा दूरा, पचि पचि हारे गुन पूरा ।।७।। तव नृप के उपयों सौका, दौरे सव दिसि अति लोका। ढूढन विषहारी नर कौं, लखि जीवंघर ततपर कौं ।।८।। पूछन लागी तुम माही, विषहर विद्या अकनाही । देखे अति आकुल लोका, तब बोले तत्व बिलोका ।।६।। कछु इक विद्या है भाई, पूरण विद्या जिनराई । सुनि !|| महा संपरा, गरीः 'जाति मुन पुष्टः ।।१०।। इह नाग मंत्र में निपुना, सब ही वातान में सुगुना । तोपनि चित यी वह जक्षा, जो रास्सै अपनी पक्षा ।।११।। नृप पुत्री निरविष कीनी, जिन मंत्र औषदी दीनी । तव राजा हुवो राजी, जानी ए नर परकाजी ।।१२।। प्रति क्रांति पराक्रमधारी, लक्षण करि लखिए भारी । ए राजवंस बरवीरा, निश्च नर नायक धीरा ।।१३।। तव निज पुत्री परणाई, पर वहुतहि प्रीति जनाई । फुनि भरध राज हू दीयो, निज वचन सत्य नृप कीयो ॥१४॥ कन्या के भ्रात वतीसा, अति ही सज्जन गुण ईसा । सब लोकपाल प्रमुखाजे, जीवंधर सौं सुमुषाजे ॥१५॥ विनयादिक गुण लखि तिनमैं, जोधर राजी मन मैं । कैयक दिन क्रीड़ा कोनी, सबही कौं साता दीनी ।।१६।।
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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