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महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तिव एवं कृतित्व
बहुरि कुमारवत्त इक साह, विमला नारि तनों जो नाह । पुरणमाला ताकै. सुभ सुता, रूपवती बहु गुण करि जुता ।।५६ ।। ताक दासी विद्य तलता, मानवती चतुराई रता । सोहू लाई चूरगवास, सूर्योदय इह नाम प्रकास ॥६०॥ इह हू पंडित सभा मझार, करै प्रसंसा विविध प्रकार । हमरे चूरण वास समान, नई विष हूँ न खान ६१ सकल कला परवीन सु जानि, मुझ स्वामिनि सी और न मानि । भले भौंह अर मृग से नैन, यों दासो बोल मधु बन ॥६॥ भमर भमैया परित हकीक, मेरे वचन न होय अलीक । स्याम लता अर विद्युत लता, निज निज स्वामिनि गुरण मैं रता॥६३।।
सुगंध परीक्षा-- दोऊ दासी मछर भरी, करें विवाद सभा मैं स्वरी । हुते सुगंध परखबा घनें, बनें उन अतिरस के सनें ॥६४।। कोऊ परस्त्रि सक्यो न सुगंध, दोऊ दीसें एक प्रबंध । अधिक वोछ जान्यों नहि परें, तव जीवंपर परख जु करै ।।६।। परखि दुहूँ को बोले लाल, चंद्रोदय है गंध विसाल । जो नहि मानी मेरे वैन, तो देखी परतखि निज नैन ।।६६।। यों कहि मस.लि हाथ ते सही, दोऊ चूरण डारे महीं । चंद्रोदय परि भ्रमर जु पाय, लागे अति सुगंध परभाय ।।६७।। तवै हुते जेते मतिवांन, तिननें बात करी परमांन । सनि सिराह्यो चंद्रोदयो, तवं विवाद सारौ मिटि गयो ॥६८।। सदा करत ही विद्यावाद, दोऊ धारत हो उदमाद । तब ते वाद दुहुनि को गयो, दोऊ कन्या अति हित भयो ।।६।। गंध परखवा दुजौ नाहि, जीबंधर सौ धरणी मांहि । यो कहि सबनि प्रसंसा करी, इन की देह गुणनिसौं भरी ॥७॥