SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४ महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तिव एवं कृतित्व बहुरि कुमारवत्त इक साह, विमला नारि तनों जो नाह । पुरणमाला ताकै. सुभ सुता, रूपवती बहु गुण करि जुता ।।५६ ।। ताक दासी विद्य तलता, मानवती चतुराई रता । सोहू लाई चूरगवास, सूर्योदय इह नाम प्रकास ॥६०॥ इह हू पंडित सभा मझार, करै प्रसंसा विविध प्रकार । हमरे चूरण वास समान, नई विष हूँ न खान ६१ सकल कला परवीन सु जानि, मुझ स्वामिनि सी और न मानि । भले भौंह अर मृग से नैन, यों दासो बोल मधु बन ॥६॥ भमर भमैया परित हकीक, मेरे वचन न होय अलीक । स्याम लता अर विद्युत लता, निज निज स्वामिनि गुरण मैं रता॥६३।। सुगंध परीक्षा-- दोऊ दासी मछर भरी, करें विवाद सभा मैं स्वरी । हुते सुगंध परखबा घनें, बनें उन अतिरस के सनें ॥६४।। कोऊ परस्त्रि सक्यो न सुगंध, दोऊ दीसें एक प्रबंध । अधिक वोछ जान्यों नहि परें, तव जीवंपर परख जु करै ।।६।। परखि दुहूँ को बोले लाल, चंद्रोदय है गंध विसाल । जो नहि मानी मेरे वैन, तो देखी परतखि निज नैन ।।६६।। यों कहि मस.लि हाथ ते सही, दोऊ चूरण डारे महीं । चंद्रोदय परि भ्रमर जु पाय, लागे अति सुगंध परभाय ।।६७।। तवै हुते जेते मतिवांन, तिननें बात करी परमांन । सनि सिराह्यो चंद्रोदयो, तवं विवाद सारौ मिटि गयो ॥६८।। सदा करत ही विद्यावाद, दोऊ धारत हो उदमाद । तब ते वाद दुहुनि को गयो, दोऊ कन्या अति हित भयो ।।६।। गंध परखवा दुजौ नाहि, जीबंधर सौ धरणी मांहि । यो कहि सबनि प्रसंसा करी, इन की देह गुणनिसौं भरी ॥७॥
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy