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जीवंधर स्वामि चरित
ताही सम और इक बात, भई सोहु धारों विरूपात । निज इछा स कुकर एक क्रीड़ा करत हुतौ प्रविवेक ॥ ७१ ॥
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जीवंधर द्वारा कुत्ते को रामोकार मंत्र सुनानা—
दुष्ट बालका लार जु परे, लकरी लोढी माररणा करे । दौरी कूकर अति हो डरो, श्रीडे द्रह मांही गिरि परयो ||७२ || प्रारण छोडि वे सनमुख भयो, सुनिकें कुमर कढ़ाई हिलयो । जान्यों इह जीवै नहि कोइ, याकी मरण अवारहि होय ||७२ || तव ताके कांनति में श्राप दियो मंत्र जो ना पाए । नमोकार सौ मंत्र न और इहे मंत्र सब श्रुतको मौर ।।७३|| यक्ष मित्रता
धारघो कूकर मन में एह, सुभ भावनि सों त्यागी देह । यक्ष सुदरसन नामा भयो, महामंत्र तं सब गयी ||७४ ॥
चंद्रोदय गिर विषै निवास, देवनि की पूरव भवभास 1 जक्ष चितारि सकल परसंग, आयो कवंर पासि प्रतिरंग || ७५ ॥
कहत भयो हो सुगुर सुजान, तुव परसाद लह्यो सुभ थांन । पाई प्रति विभूति में नाथ, करि किरपा तें पकरथो हाथ ||७६ ॥ दीयो महामंत्र ते सही, जाकी महिमा जाय न कही । याहि देखि सब अचिरज रहे नमोकार के गुन सरदहे ॥७७॥ ॥
जक्ष लिज्ञ महा मतिवांन, करो कंवर की पूज विघांन । दिये दिव्य आभर अमोल पर मित्राई कही प्रड़ोल || ७८ ।।
करी वीनती बारंबार, मोहि गनौं अपनों निरधार 1 अव सी हरख-विषादनि मांहि सदा चितारी से नाहि ॥ ७६ ॥
नमसकार करि अपने धाम, गयो जक्ष गावत गुण ग्रांम । विनु कारण जे पर उपगार करें तेहि पावे फलसार ||८०||